Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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206 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
में भगवान अरिष्टनेमी के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त होता है :- “बारसंगी' (ग) चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले :
(1 ) अन्तगड़, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन में भगवान अमिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त होता है :"चौद्दसपुव्वाइइं अहिज्जइ"
(2) अन्तगड़, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन में भ, अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त होता है :“सामाइयमाइयाई चौद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ"
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नामकरण :- “ अंतकृतद्शासूत्र" में जन्म-मरण की परम्परा का अन्त करने वाली पवित्र आत्माओं का वर्णन और इसके दस अध्ययन होने से इसका नाम “ अन्तकृतद्शा'' है। इस सूत्र के नामकरण के बारे में हमें विभिन्न प्रकार के उल्लेख प्राप्त होते हैं। “समवायांग" में इस सूत्र के दस अध्ययन और सात वर्ग बताये हैं। आचार्य देववाचक ने नन्दीसूत्र में आठ वर्गों का उल्लेख किया है, दस अध्ययनों का नहीं।' आचार्य अभयदेव ने समवायांग वृत्ति में दोनों ही उपर्युक्त आगमों के कथन में सामंजस्य बिठाने का प्रयास करते हुए लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन है, इस दृष्टि से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग कहे हैं। नन्दीसूत्रकार ने अध्ययनों का कोई उल्लेख न कर केवल आठ वर्ग बतलाये हैं।" यहाँ प्रश्न यह उठाया जा सकता है कि प्रस्तुत सामंजस्य का निर्वाह अन्त तक किस प्रकार हो सकता है? क्योंकि समवायांग में ही अन्तकृद्दशा के शिक्षाकाल दस कहे गये हैं जबकि नन्दीसूत्र में उनकी सख्या आठ बताई है। आचार्य अभयदेव ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि हमें उद्देशनकालों के अन्तर का अभिप्राय ज्ञात नहीं हैं।' आचार्य जिनदासगणी महत्तर ने नन्दीसूत्र चूर्णि' में और आचार्य हरिभद्र ने नन्दीवृत्ति में लिखा है कि प्रथम वर्ग के दस अध्ययन होने से इनका नाम
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'अन्तगडदसाओ' है। नन्दीचूर्णीकार ने 'दशा' का अर्थ अवस्था किया है।" यहाँ यह
भी ज्ञातव्य है कि समवायांग में दस अध्ययनों का निर्देश तो है किन्तु उन अध्ययनों के नामों का संकेत नहीं है। स्थानांगसूत्र में अध्ययनों के नाम इस प्रकार बतलाये हैं :
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