Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 217 ने सोलह वर्ष तक गुणरत्न संवत्सर तप की आराधना कर विपुलगिरि पर्तत पर सिद्धावस्था प्राप्त की। इसके तृतीय अध्ययन में अर्जुनमाली और उसकी पत्नि बन्धुमती का मार्मिक वर्णन प्राप्त होता है जो मुद्गरपाणि नामक यक्ष की उपासना करते थे। ललित गोष्ठी के छह सदस्यों द्वारा बन्धुमती के चरित्र हरण करने पर अर्जुनमाली को क्रोध आता है और मुद्गरपाणि यक्ष के सहयोग से उन छहों सदस्यों को मार देता हैं। भगवान महावीर के राजगृह नगर में आगमन पर सुदर्शन नामक श्रेष्ठी उनके दर्शनार्थ जाते है। सुदर्शन पर भी वह क्रोधित होता है परन्तु सुदर्शन अपने जीवन को समता-साधना में लगाकर अर्जुनमाली का कोध शांत कर देता है और वे दोनों भगवान के पास पहुँच कर श्रमण दीक्षा अंगीकार कर उग्र तपश्चर्या करते हैं। जिसके नाम से एक दिन बड़े-बड़े वीरों के पाँव थर्राते थे और हृदय काँपते थे, जिसने तेरह दिन में 1141 व्यक्तियों की हत्याएँ की थी, वही अर्जुनमाली श्रमण दीक्षा ग्रहण कर लोगों के कटुवचन तथा तिरस्कार को निर्जरा का हेतु समझकर अपनी इन्द्रियों का दमन करता है। वह निमित्त को दोषी नहीं मानते हुए अपने कर्मों का दोष मानते हुए समत्व भावना का चिन्तन करते हुए भयंकर उपसर्गों को शान्त भाव से सहन करता हुआ उग्र साधना के द्वारा छह माह में ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है। इसी वर्ग के पन्द्रहवें अध्ययन में बालमुनि अतिमुक्तक कुमार का मार्मिक वर्णन प्राप्त होता है जो साधना की दृष्टि से सभी मुनियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि साधना की दृष्टि से वय की प्रधानता नहीं है जो साधक वय की दृष्टि से भले ही छोटा हो परन्तु यदि उसमें साधना की योग्यता है तो वह दीक्षित हो 'सकता है। इस अध्ययन में अतिमुक्तक और गोतम गणधर का समागम और भगवान महावीर से चर्चाएँ मुख्य है। अतिमुक्तक कुमार का उनके माता-पिता के साथ संसार की क्षणभंगुरता का प्रसंग मार्मिक है माता-पिता ने अतिमुक्तक कुमार को इस प्रकार कहा- 'हे पुत्र! तुम अभी बालक हो । असंबुद्ध हो। तुम अभी धर्म-तत्व को क्या जानते हो? तब अतिमुक्तक कुमार ने कहा हे माता-पिता! मैं जिसको जानता हूँ, उसको नहीं जानता हूँ, और जिसको नहीं जानता हूँ, उसी को जानता हूँ। तब उन्होंने कहा कि हे माता-पिता! मैं जानता हूँ कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है किन्तु मैं यह नहीं जानता कि मृत्यु कब, किस समय अथवा कहाँ अर्थात् किस
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