Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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224 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
वर्गों के कथानकों का संबंध अरिष्टनेमि के साथ है और शेष तीन वर्ग के कथानकों का संबंध महावीर तथा श्रेणिक के साथ है।
प्रस्तुत आगम में विविध कथाओं के माध्यम से सरल एवं मार्मिक तरिके से विविध तपश्चर्याओं का विवेचन किया गया है और यह प्रतिपादित किया गया है कि किस प्रकार व्यक्ति अपनी आत्म साधना के द्वारा जीवन के अन्तिम लक्ष्य "मुक्ति" को प्राप्त करता है।
संदर्भ :
1. विधिमार्गप्रपा - प्रष्ठ 55
समवायांग प्रकीर्णक, समवाय, 86
2.
3. नन्दीसूत्र - 88
4.
समवायांग वृत्ति पत्र,
5.
वही, पत्र, 112
6. नन्दीसूत्र चूर्णिसहित पत्र, 68
7.
वही, पत्र, 73
8.
112
वही, पत्र,
68
9.
स्थानांगसूत्र - 10/113
10. तत्वार्थराजवार्तिक 1/20, पृष्ठ-73
11. अंगपण्णत्ति, 51
12. कसायपाहुड, भाग 1, पृष्ठ-130
13. “ततो वाचनान्तराक्षाणीमानीति सम्भावामः।" स्थानांगवृत्ति पत्र 483
14. अन्तकृतृद्दशा - मधुकर मुनि - 1889, भूमिका पृष्ठ 24
15. द्रोणसरि, ओधनिर्युति, पृष्ठ - 3
16.
सुत्तं गणधरकथिदं, तहेव पत्तेयबुद्धकथिदं च ।
सुदकेवलिणा काथिदं अभिण्णदेशपुव्विकार्थदं च ।।
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- मूलाचार 5/80
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