Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
250 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
संबंध काशी के राजवंश से बताया है, जैन आगमों में श्रेणिक के भंभसार, भिंभसार, भिभिसार नाम मिलते हैं। 52 श्रेणिक का जन्म नाम क्या था, इस विषय में तीनों परम्परायें
हैं के विषय में एक कथा प्रचलित है - श्रेणिक जब बालक था तब राजमहल में आग लगी। सभी राजकुमार बहुमूल्य वस्तुएँ लेकर भागे किन्तु श्रेणिक ने भंभा (राजचिन्ह) को ही ग्रहण किया इसलिए उसका नाम भंभसार पड़ा 3
बौद्ध परम्परा में श्रेणिक का नाम बिम्बिसार है। 54 तिब्बती परम्परा उसकी माता का नाम बिम्बि मानती है, इसलिए उसका नाम बिम्बिसार है। 5 जैन परम्परा के अनुसार सैनिक श्रेणियों की स्थापना करने के कारण उसका नाम श्रेणिक पड़ा 156 बौद्धों के अनुसार पिता द्वारा अठारह श्रेणियों की स्थापना करने के कारण वह श्रेणिक बिम्बिसार कहलाया। 7 महती सेना का स्वामी या श्रेणिय गोत्र होने से भी उसका नाम श्रेणिक माना जाता है।8 श्रीमद भागवत पुराण में श्रेणिक के अजातशत्रु विधिसार नाम भी आये हैं। दूसरे स्थलों पर विन्ध्यसेन और सुविन्दु नाम के भी उल्लेख हैं। 60 आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति" और त्रिषष्ठिरालाकापुरूषचरित्र के अनुसार श्रेणिक के पिता प्रसेनजित थे। दिगम्बर आचार्य हरिषेण ने श्रेणिक के पिता का नाम उपश्रेणि लिखा है। 63 आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में श्रेणिक के पिता का नाम कुणिक दिया है।64 परन्तु यह अन्य आगम एवं आगमेतर ग्रंथों से पृथक उल्लेख है। कुणिक श्रेणिक का पिता नहीं पुत्र है। अन्यत्र ग्रंथों में श्रेणिक के पिता का नाम महापद्म, हेमजित, क्षेत्रोंजा, क्षैत्प्रोजा भी मिलता है ।" उत्तराध्ययन के अनुसार श्रेणिक ने अनाथी मुनि से नाथ और अनाथ के गुरु गंभीर रहस्य को समझकर जैन-धर्म स्वीकार किया था। 7 वे क्षायिक सम्यक्त्व धारी थे । बहुश्रुत और प्रज्ञप्ति जैसे आगमों के वेत्ता न होने के बावजूद सिर्फ सम्यक्त्व के कारण उन्होंने तीर्थंकर नाम कर्म का बंध किया था। बौद्ध ग्रंथों में श्रेणिक को बुद्ध का अनुयायी माना गया है। कई विद्धानों की धारणा है कि जीवन के पूर्वार्द्ध में वह जैन था उत्तरार्द्ध में बौद्ध बन गया, इसलिए जैन ग्रंथों में उसके नरक जाने का उल्लेख है परन्तु आगम विद्वान देवेन्द्र मुनि शास्त्री इसे गलत मानते हैं। उनकी दृष्टि में यह हो सकता है कि जब राजा प्रसेनजित ने श्रेणिक को निर्वासित किया था, उस समय उन्होंने प्रथम विश्राम नन्दीग्राम में लिया था। वहाँ के प्रमुख
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org