Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 294
________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 265 कोई ग्रंथ उपस्थित नहीं था। __ अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि प्राचीन अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु ईसा की चौथी-पाँचवीं शताब्दी के पूर्व ही परिवर्तित हो चुकी थी और छठी शताब्दी के अन्त तक वर्तमान अन्तकृद्दशा अस्तित्व में आ चुकी थी। संदर्भ :1. स्थानांग- (सं. मधुकर मुनि) दशम स्थान सूत्र 110 एवं 113 दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ आयारदसाओ, पण्हवागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ। एवं अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाँ। . ‘णमि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव।। - जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लएतिय। फाले अंबडपुत्ते य एमे ते एस आहिता।। .. 2. समवायांग- (सं. मधुकर मुनि) प्रकीर्णक समवाय, सूत्र, 539-540 से किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअंच सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो, उत्तम, च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाई। पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउब्विहकम्मखयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं, जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्को, मोक्खसुहमणुत्तरं च पत्ता। - एए अण्णे य एवामाइअत्था वित्थारेणं परूवेई।. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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