Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 247
तक की इच्छा नहीं होती। संथारा आत्महत्या नहीं बल्कि साधना का मंगलमय पावन पथ है।
प्रस्तुत ग्रंथ में सभी 33 साधकों ने जीवन-मरण की आकांक्षा से रहित संलेखना व संथारा व्रत स्वीकार किया और संसार व शरीर में निर्लिप्त रहते हुए इस शरीर को छोड़कर आत्मा को भावित करते हुए काल को प्राप्त कर विभिन्न अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए, ऐसा विवेचन है। ___अनुत्तरोपपातिकदशा के अध्ययन से तत्कालीन समाज-व्यवस्था का परिचय भी प्राप्त होता है। यद्यपि इस ग्रंथ के पात्र राजपरिवारों से या आर्थिक दृष्टि से सर्व संपन्न परिवारों से संबद्ध हैं। इस वर्ग में उस समय बहुविवाह प्रथा का प्रचलन था। जैन साहित्य में सम्राट श्रेणिक की छब्बीस रानियों के नाम उल्लिखित हैं। तत्कालीन बौद्ध ग्रंथों के अनुसार श्रेणिक की पांच सौ रानियां थी। जालिकुमार का एवं अन्य दूसरे कुमारों का विवाह आठ-आठ कन्याओं के साथ हुआ। काकन्दी नगरी की सार्थवाही भद्रा ने अपने धन्यकुमार आदि पुत्रों का विवाह बत्तीस-बत्तीस कन्याओं
के साथ किया था। इन विवाहों में दहेज के लेन-देन का वर्णन भी प्राप्त होता है। . जालिकुमार को दहेज स्वरुप आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ सुवर्ण, आठ श्रेष्ठ
मुकुट, श्रेष्ठ कुण्डल युगल, उत्तम हार, उत्तम अर्धहार, उत्तम एक सराहार, मुक्तावलीहार, कनकावलीहार, रत्नावलीहार, उत्तम कड़ों की जोड़ी, उत्तम ऋटित (बाजूबंद) की जोड़ी, रेशमी वस्त्र युगल, सुती वस्त्र युगल, टसर वस्त्र युगल, पट्टयुगल, दुकुल युगल, श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मीदेवी की प्रतिमा, नन्द, भद्र, ताड़वृक्ष (सबरत्नों के), भवनों में केतुस्वरुप उत्तम ध्वज, गोकुल (एक गोकुल दस हजार गाय) नाटक (बत्तीस मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला), उत्तम घोड़े, भाण्डागार सदृश हाथी, भाण्डागार श्रीधर समान सर्वरत्नमय उत्तम यान, उत्तम युग्य (वादन), शिविकायें, स्यन्दमानिकाएँ, गिल्ली (हाथी की अम्बाड़ी), थिल्लि (घोड़े के पलाण-काठी) विकट यान (खुला यान), पारियानिक (क्रीड़ा योग्य) रथ, सांग्रामिक रथ, उत्तम अश्व, उत्तम हाथी, गांव (दस हजार परिवार का), दास, दासियां, किंकर, कंचुकी, वर्षधर, महत्तरक (अन्तःपुर के कार्य का विचार करने वाला), सोने का
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