Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 233
है तथा जो श्रमणजनों में प्रवर गन्धहस्ती के समान श्रेष्ठ हैं, स्थिर यशवाले हैं, परिषहसेना रुपी शत्रु-बल का मर्दन करने वाले हैं, तप से दीप्त हैं, जो चरित्र, ज्ञान, सम्यक्त्वरुप सार वाले, अनेक प्रकार के विशाल प्रशस्त गुणों से संयुक्त हैं, ऐसे अनगार महर्षियों के अनगार-गुणों का वर्णन है, जो श्रेष्ठ तपविशेष से और विशिष्ट ज्ञान-योग से युक्त हैं, जिन्होंने जगत हितकारी भगवान तीर्थंकरों जैसी परम आश्चर्यकारिणी ऋद्धियों की विशेषताओं को और देव, असुर, मनुष्यों की सभाओं के प्रादुर्भाव को देखा है, वे महापुरुष जिनवरों के समीप जाकर उनकी जिस प्रकार से उपासना करते हैं तथा अमर, नर, सुरगणों के लोकगुरु वे जिनवर जिस प्रकार से उनको धर्म का उपदेश देते हैं वे क्षीणकर्मा महापुरुष उनके द्वारा उपदिष्ट धर्म को सुनकर अपने समस्त काम-भागों से और इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होकर जिस प्रकार से बहुत वर्षों तक उनका आचरण करके, ज्ञान, दर्शन, चरित्र योग की आराधना कर जिन-वचन के अनुकूल पूनीत धर्म का दूसरे भव्य जीवों को उपदेश देकर और अपने शिष्यों को अध्ययन करवाकर तथा जिनवरों की हदय से आराधना कर वे उत्तम मुनिवर बेला, तेला आदि अनशन के द्वारा कर्मों का छेदन कर, समाधि को प्राप्त कर और उत्तम ध्यान योग से युक्त होते हुए जिस प्रकार से अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होते हैं और वहाँ जैसे अनुपम विषय सौख्य को भोगते हैं उस सब का वर्णन किया गया है।
षटखण्डागम की धवला टीका में अनुत्तरोपपातिकदशा का परिचय देते हुए " बताया गया है कि यह अंग बानवे लाख चौवालीस हजार पदों द्वारा एक-एक तीर्थ में
नाना प्रकार के दारुण उपसगों को सहकर और प्रतिहार्य अर्थात् अतिशय-विशेषों को प्राप्त करके पाँच अनुत्तर विमानों में गये हुये दस-दस अनुत्तरोपपातिकों का वर्णन करता है। कषायपाहुड की जयधवला टीका में भी पदों की संख्या इतनी ही कही • गयी है।" इसी विषय में नंदीसूत्र में कहा गया है:- "संखेज्जाइं पय सहस्साई पयग्गेणं" अर्थात् इस सूत्र में संख्येय हजार पद हैं। नंदीसूत्र के विवरणकार मलयगिरि ने लिखा है कि "पद सहस्राणि पदसहस्राष्टाधिक-षट-चत्वारिंशत् लक्षप्रमाणानि वेदितव्यानि" अर्थात छयालीख लाख आठ हजार पद हैं। समवायांग
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org