Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 245
बाह्य तप छः प्रकार के हैं :(क) इच्छापूर्वक अनशन। (ख) उनोदरिका (कम खाना)। (ग) वृत्ति संक्षेप (खाने-पीने, सुनने-सूंघने, देखने-स्पर्शने, गमनागमन आदि
की वृत्तियों को कम करना)। (घ) रस-परित्याग (इच्छा पूर्वक रसों का त्याग)। (ङ) काय-क्लेश (सहनशील बनने के लिए शरीर के कष्टों का सहन)
(च) संलीनता (विषयवृत्ति उत्तेजित न हो, इसके लिए अंगो की विविध
चेष्टाओं को रोकना)। आभ्यन्तर तप भी छः हैं :(क) प्रायश्चित :- किये हुए दोष से होने वाले पाप-संस्कार के निवारण
के लिए गुरू के सम्मुख उक्त दोष को प्रकट करके आलोचना करना
और गुरु द्वारा दी हुई आलोचना के अनुसार शारीरिक तथा मानसिक
अनुष्ठान करना। (ख) विनय :- माननीय गुणवंत जनों (स्त्री या पुरुष) के प्रति वचन और ... कर्म (शरीर) से नम्र होकर श्रद्धाभाव से व्यवहार करना। (ग) वैयावृत्त्य :- गुरुजन, वृद्ध, रोगी आदि की सेवा भक्ति। (घ) स्वाध्याय :- सत् शास्त्रों की वाचना लेना, उस संबंध में प्रश्न करना,
ऐसे शास्त्र-वचनों का बार-बार मनन और चिन्तन करना और जीवन में संयम-शुद्धि को स्थिर रखनेवाली कथाओं द्वारा सत्-शास्त्रों का
अभ्यास करना। (ङ) ध्यान :- दुष्ट विचारों को रोकना और सत् विचारों की वृद्धि करना
तथा शुद्ध संकल्पों की वृद्धि के लिए मानसिक व्यापार करना।
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