Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया 243 मिर्च-मसालों का प्रयोग न हो, साथ ही छाछ और नमक भी न हो, ऐसा आहार जिसमें उबले हुए चावल आदि हों - लेने का नियम आयंबिल कहलाता है) उन्होंने ऐसा नियम किया था कि आयंबिल में भी जो संसृष्ट हाथ से दिया जाए, जो फेंकने लायक हो, जिसे अन्य श्रमण-ब्राह्मण लेना पसन्द न करे, वही भिक्षा लूँगा । बुद्ध के तप का वर्णन इस प्रकार है- प्रारम्भ में बुद्ध अचेलक रहे, मुक्ताचारी रहे, "आईए" कहने पर वहां भिक्षार्थ नहीं जाते थे, " ठहरिये" कहने पर वहां भिक्षा ग्रहण नहीं करते, सामने लायी हुई भिक्षा नहीं लेते, औद्देशिक भिक्षा नहीं लेते, निमन्त्रण स्वीकार नहीं करते, कुंभी मुख से तथा कलोपी के मुख से भिक्षा नहीं लेते थे । एक ही दर्त्ति से निर्वाह करते थे। एक-एक उपवास करते, पन्द्रह-पन्द्रह उपवास करते, केवल शाकभक्षी रहे, आचाम (मांड - ओसामण) भक्षी रहे, खल-भक्षी, तृणभक्षी, गोबर भक्षी रहे, चमड़े को साफ करने वाले चमारों के द्वारा फेंक दिये गये हों, ऐसे चमड़े के टुकड़ों को भी चबाते रहे, दाढ़ी-मूंछ और सिर के केशों का लोच करते रहे, बहुत समय तक खड़े ही रहते, कांटों में सोते रहते, मल-धारण करते रहे । यहाँ तक कि उन्हें जल के बिन्दु पर भी दया आने लगी कि जल में रहे हुए छोटे-छोटे जीवों को मेरे कारण दुःख नहीं हो। छोटे बछड़ों का मूत्र पीते, अपने मूत्र तथा करीष को खाते-पीते रहे, श्मशान में रहते और सोते । मुर्दों की हड्डियों का उपधान ( तकिया) लगाते। कुत्तों को अपने ऊपर पेशाब मूतने देते। उनके मन में यह भावना आयी कि अन्य लोग मेरे ऊपर धूल डालते रहें, कानों में शलाका डालते रहें, ऐसी-ऐसी दुःख वेदना आने पर भी उनके चित्त में पाप-वृत्ति नहीं आयी। कभी-कभी एक ही बेर खाते रहे । बुद्ध स्वयं ही कहते हैं कि हे सारि - पुत्र ! ऐसा नहीं समझना कि उस समय का बेर बड़ा होता था। उस समय भी बेर इतना ही छोटा होता था । इस प्रकार के शयन, भोजन करने से मैं एकदम विवर्ण (काला) हो गया। मेरी पांसुली पुराने छप्पर की बल्ली की तरह अलग-विलग हो गयी। जैसे दिन में कुएँ में ताराओं का प्रतिबिम्ब दिखायी पड़ता है, उसी तरह मेरी आंखे उंडी हो गयी। जैसे कडुआ कद्दू ताप और पवन के प्रभाव से म्लान हो जाता है, उसी प्रकार मेरा सिर भी हो गया। जब मैं पेट का स्पर्श करता तो मेरे हाथ पीठ आती है, ऐसी कठोर तपस्या की जिससे मल-मूत्र विसर्जन के
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