Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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236 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
नगरवासियों का उनके पास आना फिर आर्य सुधर्मा के शिष्य आर्य जम्बू द्वारा अनुत्तरोपपातिक की विषय-वस्तु की जिज्ञासा करना वर्णित है। आर्य सुधर्मा भगवान महावीर के ग्यारह गणधरों में से पाँचवे गणधर थे। जैन साहित्य के अनुसार ग्यारह गणधरों के नौ गण हुए, परन्तु इनमें से दस गणधर पहले ही मोक्ष को प्राप्त हुए। अन्तिम समय में इन सबने अपने-अपने गण आर्य सुधर्मा को ही समर्पित किये जो सबसे अंत में मोक्ष गये इसलिए भगवान महावीर के तीर्थ में आर्य सुधर्मा के ही 9 गण वर्तमान में विद्यमान माने जाते है। वर्तमान में जितने भी आगम उपलब्ध हैं, उन सबके व्याख्याकार आर्य सुधर्मा ही हैं। इन वाचनाओं का निमित्त उनका शिष्य आर्य जम्बू है। इसका प्रथम सूत्र इसी बात को द्योतित करता है । आर्य जम्बू प्रश्न करते हैं कि भगवान महावीर ने आठवें अंग अंतकृतदशा के बाद नौवें अंग अनुत्तरोपपातिक दशा का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है। यहाँ अन्तकृतदशा तथा अनुत्तरोपपातिकदशा दोनों की विषयवस्तु समान ही है। दोनों में महापुरुषों के जीवन, उनके भोगविलास, तप-त्याग आदि का वर्णन समान रुप से किया गया है। अन्तर सिर्फ इतना है कि अन्तकृतदशा में उन नब्बे महापुरुषों का वर्णन है जिन्होंने तप साधना के द्वारा मोक्ष पद को प्राप्त किया जबकि अनुत्तरोपपातिकदशा उन तैंतीस महापुरूषों का वर्णन करता है, जिन्होंने अपनी तपस्या आदि के बल पर अनुत्तरविमानों में जन्म ग्रहण किया। मोक्ष प्राप्ति के लिए उन्हें एक जन्म और धारण करना आवश्यक है।
भगवान महावीर के समकालीन मगध सम्राट श्रेणिक थे। उनकी राजधानी राजगृह थी। श्रेणिक की कई पलियों में एक का नाम धारिणी था। जालिकुमार इन्हीं धारिणी देवी और श्रेणिक का पुत्र था । जालिकुमार का युवावस्था में आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ। इसमें उसे प्रचुर मात्रा में दहेज प्राप्त हुआ। इसके बाद जालिकुमार मनुष्योचित श्रेष्ठभोगों को भोगता हुआ रहने लगा । इसी बीच भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृह पधारे। राजा श्रेणिक भगवान के दर्शनार्थ गया । जालिकुमार भी भगवान के दर्शनार्थ गया। वहीं उपदेश से प्रभावित होकर उसने माता-पिता की आज्ञा लेकर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। वहाँ उसने स्थविरों की सेवा करते हुए ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। यहाँ जालिकुमार की तुलना मेघकुमार से की गयी है।
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