Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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218 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
स्थान पर कैसी अवस्था में आयेगी। जीव किन कर्मो नरक आदि में जन्म लेते है यह मैं नहीं जानता, किन्तु यह जानता हूँ कि कर्मबन्ध के कारणों से नारकी आदि योनियों में जन्म लेते हैं। अतः मैं सयंम अंगीकार करना चाहता हूँ। भगवती सूत्र में उल्लेख है कि शौच के लिए जाते समय रास्ते में पानी को देखकर अतिमुक्तक कुमार का बालकपन उभर आया और एक पात्र उस पानी में छोड़कर वे कहने लगे- "तिर मेरी नैया तिर-"। परन्तु अन्य स्थविरों को उनका यह कृत्य श्रमणमर्यादा के विपरीत लगा। अतः उन्हें उपालम्भ दिया। अतिमुक्तक को इस कृत्य पर अत्यन्त पश्चाताप्' हुआ। भगवान महावीर ने स्थविरों के मन की भावना को जानकर उन्हें कहा कि अतिमुक्तक इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेंगे। इनकी निन्दा और गर्हणा मत करो। यहाँ मुक्ति के लिए पश्चाताप के आदर्श मार्ग को अतिमुक्तक मुनि के प्रसंग से दर्शाया है।
सप्तम वर्ग के 13 अध्ययन हैं। इन तेरह अध्ययनों में राजगृह नगर के सम्राट राजा श्रेणिक की तेरह रानियों के बीस वर्ष तक संयम पालन कर अन्त में सिद्धत्व प्राप्ति का उल्लेख है। ये तेरह रानियाँ हैं- नंदा, नंदवती, नंदोत्तरा, नंदश्रेणिका, मरूता, समरूता, महामरूता, मरूदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमनायिका और भूतदत्ता। अष्टम वर्ग के 10 अध्ययन हैं। इनमें राजा श्रेणिक की रानियों की कठोर तपश्चर्या का वर्णन है जो रोंगटे खड़े करने वाला है। इन महारानियों के छुट-पुट जीवन प्रसंग अन्य आगमों में भी विस्तार से मिलते हैं। ये महारानियाँ अपने जीवन के अन्त में संलेखना पूर्वक आयु पूर्ण कर मुक्ति प्राप्त करती हैं। इस वर्ग के प्रथम अध्ययन में काली देवी के "रत्नावली तप", दूसरे अध्ययन में सुकाली देवी के "कनकावली तप", तृतीय अध्ययन में महाकाली देवी के "लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप", चतुर्थ अध्ययन में कृष्णा देवी के "महासिनिष्क्रीड़ित तप", पंचम अध्ययन में सुकृष्णा देवी के "सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिका तप", षष्ठ अध्ययन में महाकृष्णा देवी के "लघुसर्वतोभद्र तप", सप्तम अध्ययन में वीरकृष्णा देवी के "महासर्वतोभद्र तप", अष्टम अध्ययन में रामकृष्णा देवी के "भद्रोत्तरप्रतिमा तप", नवम अध्ययन में पितृसेन कृष्ण देवी के "मुक्तावली तप" तथा दशम अध्ययन में महासेनकृष्णा देवी के "आयंबिल-वर्धमान तप" का वर्णन है जो श्रमणों के लिए अनुकरणीय
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