Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 213
वाले साधकों का उल्लेख है। भगवान् अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थंकर हैं। यद्यपि आधुनिक इतिहासकार उन्हें निश्चित तौर पर ऐतिहासिक पुरूष नहीं मानते है, किन्तु उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। जब उस युग में होने वाले श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरूष माना जाता है तो उन्हें भी ऐतिहासिक पुरूष मानने में संकोच नहीं होना चाहिए।
जैन परम्परा में ही नहीं, वैदिक परम्परा में भी अरिष्टनेमि का उल्लेख अनेक स्थलों पर हुआ है। ऋग्वेद में अरिष्टनेमि शब्द चार बार आया है। "स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः"1" यहाँ पर अरिष्टनेमि शब्द भगवान अरिष्टनेमि के लिए ही आया है। इसके अतिरिक्त भी ऋग्वेद के अन्य स्थलों पर "तार्थ्य अरिष्टनेमि" का वर्णन है। यजुर्वेद" और सामवेद में भी भगवान् अरिष्टनेमि को तार्क्ष्य अरिष्टनेमि लिखा है जो भगवान का ही नाम होना चाहिए। उन्होंने राजा सगर को मोक्ष-मार्ग का जो उपदेश दिया, वह जैनधर्म के मोक्ष-मन्तव्यों से अत्यधिक मिलता-जुलता है।40 ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे। अतः यह उपदेश किसी श्रमण संस्कृति के ऋषि का ही होना चाहिए। यजुर्वेद में एक स्थान पर अरिष्टनेमि का वर्णन इस प्रकार है- अध्यात्म यज्ञ को प्रकट करने वाले, संसार के सभी भव्य जीवों को यथार्थ उपदेश देने वाले, जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित करता हूँ।" डॉ. राधाकृष्णन ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है। - स्कन्दपुराण के प्रभास खण्ड में एक वर्णन है- अपने जन्म के पिछले भाग में वामन ने तप किया। उस तप के प्रभाव से शिव ने वामन को दर्शन दिये। वे शिव, श्यामवर्ण, अचेल तथा पद्मासन में स्थित थे। वामन ने उनका नाम नेमिनाथ रखा। नेमिनाथ इस घोर कलिकाल में सब पापों का नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है।'
प्रभासपुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। महाभारत अनुशासन
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