Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 197
प्रतिमाओं का वहन, सत्रह प्रकार के संयम, ब्रह्मचर्य, आकिंचन्य, समिति, गुप्ति, अप्रमाद, योग, स्वाध्याय और ध्यान संबंधी विवरण हैं। आगे इसमें उत्तम संयम को प्राप्त करने पर तथा परिग्रहों के जीतने पर चार कर्मों के क्षय होने से केवलज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार से होती है, इसका उल्लेख है, साथ ही उन मुनियों की श्रमण पर्याय, प्रायोपगमन, अनशन, तप और रज से मुक्त होकर मोक्षसुख को प्राप्त करने संबंधी उल्लेख हैं। समवायांग के अनुसार इसमें एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाये गये हैं जबकि उपलब्ध अन्तकृद्दशा में आठ वर्ग हैं। अतः समवायांग में वर्तमान अन्तकृद्दशा की अपेक्षा एक वर्ग कम बताया गया है। ऐसा लगता है कि समवायांगकार ने स्थानांग की मान्यता और उसके सामने उपलब्ध ग्रंथ में एक समन्वय बैठाने का प्रयास किया है। ऐसा भी लगता है कि समवायांगकार के सामने स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा लुप्त हो चुकी थी और मात्र उसमें 10 अध्ययन होने की स्मृति ही शेष थी तथा उसके स्थान पर वर्तमान उपलब्ध अन्तकृद्दशा के कम से कम सात वर्गों का निर्माण हो चुका था। . नन्दीसूत्रकार अन्तकृद्दशा के संबंध में जो विवरण प्रस्तुत करता है वह बहुत कुछ तो समवायांग के समान ही है किन्तु उसमें स्पष्ट रुप से इसके आठ वर्ग का उल्लेख प्राप्त है। समवायांगकार जहाँ अन्तकृद्दशा के दस समुद्देशन कालों की चर्चा करता है वहाँ नन्दीसूत्रकार उसके आठ उद्देशन कालों की चर्चा करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृद्दशा की रचना समवायांग के काल तक बहुत कुछ हो चुकी थी और वह अन्तिम रुप से नन्दीसूत्र की रचना के पूर्व अपने अस्तित्व में आ चुका था। श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध तीनों विवरणों से हमें यह ज्ञात होता है कि स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा के प्रथम संस्करण की विषयवस्तु किस प्रकार से उससे अलग कर दी गई और नन्दीसूत्र के रचना काल
तक उसके स्थान पर नवीन संस्करण किस प्रकार अस्तित्व में आ गया। - यदि हम दिगम्बर साहित्य की दृष्टि से इस प्रश्न पर विचार करें तो हमें सर्वप्रथम तत्त्वार्थवार्तिक में अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु से संबंधित विवरण उपलब्ध होता है। उसमें निम्न दस अध्ययनों की सूचना प्राप्त होती है :- नमि, मातंग, सोमिल, रामपुत्त,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org