Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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184 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
1 कन्दर्प
: मानसिक विकारों को बढ़ाने वाले वचनों
को बोलना, सुनना अथवा वैसी चेष्टय
करना। ... 2. कोटकुच्य विदूशकों की भांति हाथ-पैर नचाना,
अन्य आंगिक चेष्टा करना। ___3. मौखर्य : अधिक वार्तालाप करना, शेखी मारना,
___ दूर की हाँकना। 4. संयुक्ताधिकरण : बिना अपेक्षा के हिंसक हथियारों का
संग्रह करना। 5. उपभोग परिभोगातिरेक : उपभोग-परिभोग की सामग्री को
अवश्यकता से अधिक मात्रा में संग्रह
करना।.. (ख) दिशापरिमाण व्रत :- इस व्रत का आशय दिशाओं के परिमाण निर्धारित करने से है। उपासकदशांग की टीका में इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि पूर्व, पश्चिम आदि दिशाओं में मैं इतनी दूर तक नहीं जाऊँगा तथा इससे आगे नहीं जाऊँगा इस प्रकार की मर्यादा निर्धारित कर लेना दिशापरिमाणव्रत है। इसे दिग्व्रत भी कहते हैं। आचार्य समन्तभद्र का मंतव्य इस संबंध में इस प्रकार विवेचित है– दसों दिशाओं की मर्यादा करके सूक्ष्म पापों की निवृत्ति के लिए "मैं इससे बाहर नहीं जाऊँगा" इस प्रकार का संकल्प ही दिग्व्रत नाम गुणव्रत है। इसके 5 अतिचार है।:- उर्ध्वदिशातिक्रमण, उधोदिशातिक्रमण, तिर्यदिशातिक्रमण, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तरद्धा।
उर्ध्वदिशातिक्रमण : उर्ध्व (ऊपर) दिशा का अतिक्रमण।
अधोदिशातिक्रमण : अधो (नीचे) दिशा का अतिक्रमण। तिर्यदिशातिक्रमण : अन्य दिशाओं का अतिक्रमण करना। क्षेत्रवृद्धि : दो विभिन्न दिशाओं की जो मर्यादा निर्धारित
की गई है उनमे से किसी एक दिशा में क्षेत्र
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