Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया 175 महाशतक अपने अवधिज्ञान के बल पर रेवती की कष्टपूर्ण मृत्यु का प्रकाशन उसके समक्ष करता है। महाशतक के इस कृत्य की महावीर द्वारा निंदा की गई और इसके लिए उसे प्रायश्चित करना पड़ा। उसने ऐसा किया और अपने साधना पथ पर दृढ़ बना रहा। नन्दिनीपिता 27 - श्रावस्ती निवासी गाथापति नन्दिनीपिता की व्रताराधना में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं हुई ।
10. सालिहीपिता - सालिहीपिता श्रावस्ती का गाथापति था। श्रावक धर्म के साधनाक्रम में इसे किसी तरह के उपसर्गों का सामना नहीं करना पड़ा।
जैन ग्रंथों में श्रावक शब्द :- श्रावक जैन परम्परा का पारिभाषिक शब्द है जो प्रायः गृहस्थ साधकों या उपासकों के लिए व्यवहत होता है। जैन वाङ्गमय में इसके लिए विभिन्न प्रकार के शब्दों का उल्लेख मिलता है। आचारांगसूत्र प्राचीनतम् जैन ग्रंथ है और श्रमणचर्या का प्रतिपादन करने वाला प्रमुख अंग है। इसमें श्रावक या उपासक शब्द देखने को नहीं मिलता है। द्वितीय अंग साहित्य सूत्रकृतांग में श्रावक के लिए श्रमणोपासक, आगारिक एवं श्रावक शब्दों का प्रयोग मिलता है |29 इसी प्रकार स्थानांग° में आगार व श्रमणोपासक; समवायांग' में श्रमणभूत एवं उपासक, भगवतीसूत्र” में श्रमणोपासक, कहीं-कहीं उपासक और श्रावक; ज्ञाताधर्मकथा” में श्रमणोपासक, आगार; उपासकदशांग में उपासक, श्रमणोपासक, गिहि, आगार, श्रावक; अंतकृद्दशा” में श्रमणोपासक; उत्तराध्ययनसूत्र में उपासक शब्द का प्रयोग मिलता है। आचार्य कुंदकुंदरचित चारित्रपाहुड में श्रावकों के लिए सागार; सागार धर्मामृत' में श्रावक, वसुनंदि श्रावकाचार" में श्रावक व उपासक; तत्वार्थसूत्र में आगारी शब्दों का उल्लेख हुआ है। श्रावक, उपासक, श्रमणोपासक, आगारी, सागारी, आदि शब्द जैन ग्रंथों में समानार्थक माने गए हैं और प्रायः इनका प्रयोग गृहस्थ साधकों के लिए किया जाता है।
उपासकदशांग और श्रावकाचार :- गृहस्थ साधकों द्वारा अहिंसादि के रुप में
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