Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 155
प्रश्न है कि राजगृह नगर कहां है, तब उसका समाधान करते हुए उसके वैभव आदि का वर्णन किया, उसको उत्तर व पूर्व के दिशा भाग में कहने का संकेत किया है, इसी संकेत के साथ-साथ श्रेणिक राजा, रानी चेलणा, तीर्थंकर महावीर, गौतम, उनकी परिषद्, सभा, सभा की स्थिति आदि के साथ-साथ महावीर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया। गौतम स्वामी की शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्थिति का भी कथन किया गया। इसी प्रसंग में चलन (कर्म की उदयावली) उदीरण, वेदना, प्रहाण, छेदन, भेदन, दग्ध, मृत, निजीर्ण, एकार्थ और घोष स्वर इन नौ पदों के माध्यम से कर्म स्थिति को भी व्यक्त किया गया। अन्य अलग-अलग विषयों के विवेचन में कर्मों की विविध स्थिति पर प्रकाश डाला गया, उनके द्वार, उनकी स्थिति, अवगाहना, लेश्या आदि पर भी विचार किया गया।
व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रतिपादित विषय :- भगवती सूत्र के सभी शतकों में ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि विषयों का विश्लेषण सर्वत्र प्राप्त होता है। इस आगम के सूत्रों में विविध प्रकार के जीवों और उनसे संबंधित विषयों का पर्याप्त विवेचन भी मिलता है। इसके अंतर्गत मत-मतान्तर या वाद-विवाद के विषय भी प्रश्नोत्तर शैली में व्यक्त किए गए हैं। अन्य मतावलम्बियों में मंखली गोशालक, जमाली, शिवराजर्षि, जयन्ती, स्कन्दल आदि के विचारों का समाधान भी दिया गया है, इसमें तत्कालीन श्रमणोपासकों व उपासिकाओं द्वारा पूछे गए विविध प्रश्नों का सैद्धान्तिक निराकरण अत्यन्त . महत्वपूर्ण है।
शैलीगत अध्ययन :- व्याख्याप्रज्ञप्ति की ज्ञप्ति में प्रश्नोत्तर शैली है, इसमें किसी प्रकार की शंका की आवश्यकता नहीं है। प्रश्नोत्तर शैली में जिस तरह से प्रश्न किए गए उसी तरह के समधान संक्षिप्त रूप में और कहीं-कहीं व्यापक रुप में किये गए हैं। पृथ्वीकाय के विवेचन में प्रश्न किया गया कि पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने समय तक रहती है, तब उसका उत्तर दिया गया कि पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य से अंतर्मुहूर्त व उत्कृष्ट से 22000 वर्ष की है। मात्र इस कथन या प्रश्न के समाधान के साथ विषय को नहीं छोड़ दिया, अपितु पृथ्वी क्या
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