Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 153 में प्रज्ञ जनों के द्वारा जो ज्ञान व्यक्त किया गया है उसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है।
व्याख्याप्रज्ञप्ति को भगवती भी कहा गया है।
विषय प्रतिपादन :- व्याख्याप्रज्ञप्ति में विविध विषयों का सूत्रात्मक दृष्टि से कथन किया गया है। इसके समग्र विवेचन, कथन या वस्तु वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस आगम में जीव, जगत, तत्व - विज्ञान, ज्ञान - मीमांसा, आचार-मीमांसा, भौगोलिक वर्णन, खगोल विवेचन, गणितीय दृष्टि, धर्म तत्व, , कर्म सिद्धान्त, समाज, संस्कृति, राजनीति आदि ज्ञान - विज्ञान के 36000 प्रश्न हैं और उन प्रश्नों का समाधान आधुनिक वैज्ञानिक जगत् के लिए अत्यन्त विचारणीय है। इसमें आज की जटिलतम समस्या पर्यावरण संरक्षण की मानी गई है। यदि इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं तो इसके समाधान के सूत्र भी इस आगम ग्रन्थ में सर्वत्र विद्यमान हैं। जहाँ आगम के सूत्रों में जीव तत्व को महत्व दिया है, वहीं पृथ्वी, जल अग्नि, वायु और समस्त प्रकार की वनस्पतियों का उल्लेख करके यह भी संकेत किया है कि पुढवी जीवा (व्या. 9 / पृष्ठ 511) पृथ्वी जीव है, यह सचित है, इसमें चेतना शक्ति है, इसके दोहन से कुछ समय के लिए खनिज तत्व, आनन्द प्रदान कर सकते हैं, परन्तु वे ही तत्व भूगर्भ को खोखला कर देते हैं, जिससे न केवल पृथ्वी के खनिज तत्वों का अभाव होता है, अपितु पृथ्वी दोहन से जल, अग्नि, वायु और वनस्पतियाँ भी प्रभावित होती हैं। अतः इस आगम के परिवेश में एक से एक विचारणीय ही नहीं, अपितु वैज्ञानिक तथ्य इस बात को पुष्ट करते हैं कि जो भी नैसर्गिक तत्व हैं, उनका सभी तरह से संरक्षण होना चाहिए, नैसर्गिक तत्वों के संरक्षण से हमारी भौगोलिक परिस्थितियाँ भी बनी रहेंगी एवं समस्त प्राण तत्व से युक्त जीव राशियाँ भी सुरक्षित एवं संरक्षित हो सकेंगी।
व्याख्याप्रज्ञप्ति का प्रारम्भ :
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नमो अरहंताणं
नमो सिद्धाणं
नमो आयरियाणं
नमो उवज्झायाणं
नमो लोए सव्वसाहूणं ।
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