Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
152 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
व्याख्यान/कथन या प्रतिपादन जिसमें हो, उसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। नामकरण की दृष्टि से अंगपण्णत्ति में जो कुछ कहा गया वह गोम्मटसार की व्याख्या की तरह है, परन्तु इसके नामकरण के दो रुप मिलते हैं - "विवायपण्णति और विवाहपण्णति।" विवाय का अर्थ विपाक भी होता है यदि यह शब्द लिया जाता है तो विपाक का अर्थ परिपाक भी है। अर्थात् जिस आगम में विशिष्ट रुप से या नाना प्रकार से कर्म प्रकृतियों, जीवादि तत्वों पर विचार किया गया हो, उसका नाम विवायपण्णति है।
व्याख्याप्रज्ञप्ति का आख्यान :- विवाहपण्णति णाम अंगं दोहि लक्खेहि अट्ठावीस-सहस्सेहि पदेहि किमत्थि जीवो, किं णत्थि जीवो, इच्चेवमाइयाई सट्ठि-वायरण सहस्साणि परुवेदि। (षट् . 1/1/102)। व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक अंग ग्रन्थ में दो लाख अट्ठाईस हजार पदों के माध्यम से जीव क्या है? जीव क्या नहीं है? इत्यादि रुप से साठ हजार प्रश्नों का व्याख्यान है। अंगप्रज्ञप्ति ग्रंथ में नय की अपेक्षा से प्रश्नों के उत्तर देने की बात कही गई है। साठ हजार प्रश्नों के उत्तर की अलग-अलग संख्या भी निर्दिष्ट की गई है :
(क) अंग (दो लाख अट्ठाइस हजार) । (ख) श्लोक (ग्यारह नील, चौसठ खरब, इक्यासी अरब, उनहत्तर करोड़,
सैंतीस लाख, दो हजार प्रमाण) (ग) अक्षर (372741419864000) संज्ञा प्रयोजन, लक्षण, विषय वस्तु
वर्णन, विवेचन, संशय निवारण आदि प्रत्युत्तर के रुप में होने से
व्याख्याप्रज्ञप्ति का महत्व बढ़ जाता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति की व्युत्पति :- वि+आ+ख्या+प्राज्ञप्ति अर्थात् जिस आगम में विविध प्रकार से वस्तु का आख्यान पूर्वक प्रश्न करके जो समाधान दिया जाता है, वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है।
__ व्याख्याप्रज्ञप्ति :- (व्याख्या + प्रज्ञा + आप्ति) व्याख्या का अर्थ कथन है, प्रज्ञा का अर्थ ज्ञान है और आप्ति का अर्थ ग्रहण करना है? अर्थात् व्याख्या करने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org