Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 99
बुज्झिज्ज विउद्देज्जा : समझो और तोड़ो बंधणं परिजाणिया : बंधन को जानकर किमाह बंधणं वीरे : भगवान ने बंधन किसे कहा है किं वा जाण तिउट्टई : और उसे कैसे तोड़ा जा सकता है।
सूत्रकार ने आदि पद में बोध प्राप्ति जिसका तात्पर्य आत्मबोध से है, का उपदेश दिया है। बोध प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है। यह तथ्य सूत्रकृतांग, आचारांग, उत्तराध्ययन' आदि ग्रन्थों में परिलक्षित होता है। आत्मबोध का अर्थ है "मैं कौन हूँ"आत्मा तत्त्वतः बंधन रहित होते हुए भी इस प्रकार के बंधन में क्यों पड़ी। बंधनों को कौन और कैसे तोड़ सकता है।
- बंधन का स्वरुप :- "बध्यते परतन्सीक्रियते आत्माऽनेनेति बंधनम्" (कर्म ग्रन्थ टीका) अर्थात जिसके द्वारा आत्मा बांधा जाता है या परतन्त्र कर दिया जाता हे वह बंधन है। सूत्रकृतींग की शीलांक टीका) में कहा गया है कि आत्मप्रदेशों के साथ जो कर्म पुद्गल एक होकर स्थित हो जाते हैं वे बंधन या बंध कहलाते हैं। वाचक उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में कषाय युक्त जीव द्वारा कर्मयोग्य पुद्गलों का ग्रहण करना बंध है, ऐसा कहा है। अकलंक देव ने बंधन की परिभाषा करते हुए विशेष की अपेक्षा से बंध के दो प्रकार बताये हैं :_I. द्रव्य बंध एवं
II. भाव बंध? III. द्रव्यबंध :- ज्ञानावरणादि कर्म पुद्गल प्रदेशों का जीव के साथ संयोग
. द्रव्यबंध है। ... I. भावबंध :- आत्मा के अशुद्ध चेतन परिणाम (भाव) मोह, राग, द्वेष और
क्रोधादि जिनसे ज्ञानावरणादि कर्म के योग्य पुद्गल परमाणु आत्मा की ओर आकृष्ट होते हैं, भावबंध कहलाता है। आचार्य नेमिचन्द्र ने द्रव्य
संग्रहा में कर्मबंध के कारणभूत चेतन परिणाम को भावबंध कहा है। "किमाह बंधणं वीर'' एवं 'बंधणं परिजाणिया' में बंधणं शब्द बंधन
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