Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 131
पुनरावृत्ति की बहुलता है और यदि पुनरावृत्त विषयों को ग्रन्थ से पृथक् कर दिया जाय तो दोनों ग्रन्थों का कलेवर अत्यन्त छोटा हो जायगा। ____ दोनों ग्रन्थों में बहुत से ऐसे तत्त्व, पदार्थ या प्रकरण संगृहीत या वर्णित हैं जिनका विवरण एक से अधिक स्थानों पर उपलब्ध है। एक तथ्य का एक से अधिक स्थलों पर प्रतिपादन निरर्थक है। स्वाभाविक रुप से पूर्ववर्ती स्थानों या सूत्रों की अपेक्षा पश्चाद्वर्ती स्थानों या सूत्रों का विवरण अधिक पूर्णता लिये हुए है। परिणामतः तथ्य-विशेष से संबंधित अन्तिम विवरण की उपस्थिति में तद्विषयक अन्य सभी पूर्ववर्ती विवरण अप्रासंगिक या निरर्थक सिद्ध हो जाते हैं। इन दोनों ग्रन्थों में विषयों का वर्गीकरण, व्यवस्थित योजना के अनुरुप न होना ही मुख्यतः पुनरावृत्ति की समस्या के मूल में हो सकता है। यह भी माना जा सकता है कि ग्रन्थ के आरम्भिक स्थानों में विषय के मुख्य प्रकारों या भेदों को बता दिया गया है। बाद में यथास्थान अवसरानुकूल अन्य भेदों या अवान्तर भेद सहित विषयों का वर्णन किया गया है। श्रुतिपरम्परा द्वारा ही श्रृंतों का ज्ञान होने से ग्रन्थ रचना में स्वाभाविक रुप से स्मरण सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता था। किसी प्रकरण के कुछ अंशों का स्मरण करने पर सम्पूर्ण प्रकरण का स्मरण हो आता है। सम्भवतः इसलिए भी विषय का पहले आंशिक और बाद में अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन है। विषय-विशेष का क्रमिक विकास भी इन ग्रन्थों में प्राप्त पुनरावृत्ति का कारण हो सकता है। यह भी सम्भव है कि सूत्रकार की शैली ही ऐसी रही हो। परन्तु उक्त सभी तर्कों को स्वीकार करने में प्रमुख बाधा ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन प्रणाली की एकरुपता का अभाव है। यदि कुछ विषयों की एक कारण से या उक्त सभी कारणों से पुनरावृत्ति आवश्यक थी या हुई है तो समस्त विषयों की क्यों नहीं? विषय-प्रतिपादन में एकरुपता का यह अभाव ही पुनरावृत्ति को इन ग्रन्थों का निर्बल पक्ष बना देता है। · पुनरावृत्ति की दृष्टि से स्थानांग में एक पदार्थ अथवा क्रिया के दो स्थानों पर प्रतिपादित किये जाने की बहुलता है। कुछ तथ्यों का तीन, कुछ का चार और कुछ का पाँच स्थलों पर भी निरुपण हुआ है। पुद्गल संबंधी विवरण स्थानांग के दसों स्थानों के अन्त में प्राप्त होता है। जहाँ तक समवायांग में पुनरावृत्ति का प्रश्न है,
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