Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
106 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
विचारधारा जो आत्मा को नित्य एवं दूसरी उच्छेदवादी विचारधारा जो आत्मा का उच्छेद अर्थात् उसे अनित्य मानती थी। बुद्ध ने इन दोनों का खण्डन कर अनात्मवाद का उपदेश दिया परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उन्हें आत्मा में विश्वास नहीं था। वे आत्मा को नित्य और व्यापक न मानकर क्षणिक चित संतति के रुप में स्वीकार करते थे। वही मत क्षणिकवाद है जिसके अनुसार आत्मा और सभी वस्तुएँ क्षणिक हैं। विशुद्धिमग्ग, सुत्तपिटकगत अंगुत्तर निकाय आदि बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार क्षणिकवाद के दो रुप हैं- एक मत रुप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान इन पंचस्कंधों) से भिन्न या अभिन्न सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष व ज्ञानादि के आधार भूत आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं मानता। दूसरा रुप चार धातुओं-पृथ्वी, जल, तेज और वायु को स्वीकार करता है। ये चारों जगह का धारण, पोषण करते हैं इसलिए धातु कहलाते हैं। वे चारों एकाकार होकर भूतसंज्ञक रुप स्कंध बन जाते हैं एवं जब शरीर रुप में परिणित हो जाते . हैं तो उन्हीं की जीव संज्ञा होती है। वृत्तिकार शीलांक के अनुसार ये सभी बौद्धमतवादी अफलवादी हैं। जब आत्मा और सभी क्रियाएं क्षणिक हैं तो क्रिया-क्षण में ही कर्ता आत्मा का समूल विनाश हो जाता है, फिर क्रियाफल के साथ आत्मा संबंध ही कहाँ रहता है। जब फल के समय तक आत्मा भी नहीं रहती और क्रिया भी उसी क्षण नष्ट हो गयी तो ऐहिक-पारलौकिक क्रिया-फल का भोक्ता कौन होगा। पंचस्कंधों से भिन्न यदि आत्मा नहीं माना जायेगा तो सुख, दुःखंदि फलों का उपभोग कौन करेगा? साथ ही आत्मा के अभाव में बंध-मोक्ष, जन्म-मरण की व्यवस्था गड़बड़ हो जायेगी और शास्त्रविहित प्रवृत्तियां निरर्थक हो जायेगी। अतः क्षणिकवादियों का मत असंगत है।
नियतिवाद :- नियतिवाद आजीवकों का सिद्धान्त है। मरवलिपुत्र गोशालक नियतिवाद का प्रवर्तक था। सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कंध में गोशालक या आजीवक का नामोल्लेख नहीं है परंतु उपसक दशांग के सातवें अध्ययन के सद्दालपुत्र एवं कुण्डकोलिय प्रकरण मेंगोशालक और उसके मत का स्पष्ट उल्लेख है। इस मतानुसार उत्थान, कर्मबल, वीर्य, पुरूषार्थ आदि कुछ भी नहीं है। सब भाव सदा से नियत है। बौद्ध ग्रन्थ दीघनिकाय, संयुक्तनिकाय तथा जैनागम स्थानांग, समवायांग,व्याख्याप्रज्ञप्ति, उपासकदशांग आदि में आजीवक मत प्रवर्तक नियतिवादी गोशालक का वर्णन उपलब्ध है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org