Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 79
आत्मतुला का मापदंड दिया है, उसे किसी न किसी रुप में अन्य दर्शनों/दार्शनिकों ने भी अपनाया है। इस संदर्भ में पाश्चात्य विख्यात दार्शनिक कांट का नाम सहज ही स्मरण हो आता है। कांट, यद्यपि जैनदर्शन से निश्चित ही अपरिचित रहे होंगे लेकिन उन्होंने नैतिक आचरण के जो मापदंड दिए हैं उनमें से एक आत्मतुला की ओर ही संकेत करता है। उनके अनुसार मनुष्य को ठीक उसी तरह व्यवहार करना चाहिए जैसा कि वह अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। कांट का कहना है कि व्यक्ति को सदैव ऐसे सूत्र के अनुसार काम करना चाहिए जो सार्वभौम नियम बन सके- "KCT ONLY ON THAT MAXIM(OR PRINCIPLE), HKHICH THO CANSTAT THE SAME TIME ILL TO BECOMEA UNIVERSAL LAW." दूसरे शब्दों में हम दूसरों के प्रति कोई ऐसा काम न करें जिसे हम अपने लिए गलत समझते हों। . महावीर की "आत्मतुला" के संदर्भ में यदि हम देखें तो इससे यह अर्थ निकलेगा कि यदि हमें हिंसा अपने लिए प्रिय नहीं है तो हमें दूसरों की हिंसा नहीं करनी चाहिए। अहिंसा ही एक ऐसा नियम हो सकता है जिसे सार्वभौमिक रुप से स्वीकार किया जा सकता है, हिंसा नहीं।
हिंसा का प्रारुप-विज्ञान (TYPOLOGY) ___ यद्यपि जैन धर्मग्रंथों में अन्य स्थानों पर हिंसा के अमुक प्ररुपों का वर्णन और वर्गीकरण हुआ है किंतु आयारो में स्पष्ट रुप से हिंसा का कोई प्ररुप विज्ञान नहीं मिला परन्तु एक स्थल पर हिंसा की दो विमाओं (DIMENSIONS) का उल्लेख किया गया है। (40/140)। इसमें कहा गया है कि कुछ लोग प्रयोजनवश प्राणियों का वध करते हैं किंतु कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन ही वध करते हैं। इस प्रकार हिंसा अर्थवान
भी हो सकती है और अनर्थवान भी हो सकती है। इसी गाथा में आगे चलकर हिंसा . की एक और विमा बताई गई है जो हिंसा को तीनों कालों-विगत, वर्तमान और भविष्य से जोड़ती है। हिंसा इस प्रकार भूत-प्रेरित हो सकती है, वर्तमान प्रेरित हो सकती है और भविष्य प्रेरित भी हो सकती है
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