Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 81
हिंसा में केवल बाल और अज्ञानी लोग ही प्रवृत्त हो सकते हैं क्योंकि इससे कोई मानव प्रयोजन तो सधता नहीं है, बल्कि इससे व्यक्ति निरर्थक ही अन्य प्राणियों से अपना बैर ही बढाता है। अलं बालस्य संगेण, वेरं वड्ढेति अप्पणो।
___- (130/32) आयारो में इस प्रकार जहाँ एक ओर प्रयोजन-सापेक्ष हिंसा का अर्थवान और निरर्थक विमा का उल्लेख मिलता है वहीं एक दूसरी विमा, जो काल-सापेक्ष है, भी बतलाई गई है। इसके अनुसार (देखिए, 40/140, ऊपर उद्धरित) ___1. कुछ व्यक्ति (हमारे स्वजनों की) हिंसा की गई थी (भूतकाल) इसलिए
वध करते हैं कुछ 2. कुछ व्यक्ति इसलिए कि लोग हिंसा कर रहें हैं (वर्तमान), वध करते
है तथा कुछ : 3. कुछ व्यक्ति इसलिए भी हिंसा में प्रवृत्त होते हैं कि उन्हें (भविष्य में) . संभावना लगती है कि हिंसा की जाएगी।
प्रथम प्रकार की हिंसा स्पष्ट ही भूतकाल से प्रेरित हिंसा है क्योंकि विगत में कभी (परिजनों की) हिंसा की गई थी इसलिए व्यक्ति हिंसा में विगत हिंसा का बदला लेने के लिए हिंसा करता है।
द्वितीय प्रकार की हिंसा वर्तमान में हो रही हिंसा के प्रतिक्रिया स्वरुप की जाती है। आज कुछ लोग हिंसा में प्रवृत्त हैं इसलिए उसका जबाब देने के लिए इस प्रकार " की हिंसा में प्रतिक्रिया स्वरुप, जबाबी आक्रमण किया जाता है। इसे हम प्रतिक्रियात्मक
हिंसा कह सकते हैं। .. तृतीय प्रकार की हिंसा में व्यक्ति भविष्य की आशंका में, इस डर से कि
कहीं हमारे ऊपर हिंसा न हो जाए, हिंसा पर उतारू हो जाता है। इस प्रकार की हिंसा को हम आशंकित हिंसा या भयाक्रांत हिंसा कह सकते हैं।
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