Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 85 उनके गोत्र, नदियों, निधियों एवं ज्योतिषिक देवों की विभिन्न गतियों का वर्णन है। नंदी सूत्र में भी लगभग किंचित अंतर के साथ स्थानांग की यही विषयवस्तु निरूपित की गयी हैं। समवायांग और नंदीसूत्र दोनों ही इसमें एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन, 21 उद्देशन काल, 21 समुद्देशन काल और 72 हजार पदों के होने का उल्लेख करते हैं। परवर्ती श्वेताम्बर ग्रंथों (विधिमार्गप्रपा आदि) में भी इसी आधार पर इसकी विषयवस्तु का उल्लेख मिलता है।
दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थवार्तिक में इसकी विषयवस्तु का निरुपण करते हुए कहा गया है कि “स्थानांग में अनेक आश्रय वाले अर्थों का निर्णय है।" धवला और जयधवला में स्थानांग की विषयवस्तु को स्पष्ट करते हुए यह कहा गया है कि इसमें एक से लेकर उत्तरोत्तर एक-एक अधिक स्थानों का वर्णन है, जैसे महत् आत्मा एक है, वह बद्ध और मुक्त के भेद से दो प्रकार का है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य लक्षणों से युक्त होने के कारण वह तीन प्रकार का है। चार गतियों में संक्रमण करने से चार प्रकार का है। पांच गुणों (भावों) में भेद से वह पाँच प्रकार का है। छः दिशाओं में गमन करने के भेद से जीव छः प्रकार का है। सप्तभंगी के भेद से वह सात प्रकार का है। आठ कर्माश्रवों के आधार पर जीव आठ प्रकार का है। नौ अर्थक होने से वह नौ प्रकार का है। दस स्थान यथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, प्रत्येक बनस्पति, निगोध, द्विइन्दिय, त्रिन्द्रिय, चर्तुइन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय के भेद से दस प्रकार का है। इस प्रकार अजीव पुद्गल भी एक प्रकार, दो प्रकार आदि का है। दिगम्बर परम्परा में इसके पदों की संख्या 42 हजार मानी गयी है।
यदि हम उपर्युक्त विवरणों की तुलना स्थानांग के वर्तमान स्वरुप से करते हैं तो एक-दो आदि संख्या क्रम से इसमें दस संख्या तक के विषयों का निरुपण उपलब्ध होता है, अत: यह कहा जा सकता है कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में इसके संख्याओं के उत्तरोत्तर क्रम से विवेचन वाले स्वरुप की वर्तमान स्वरुप से कोई भिन्नता नहीं है परन्तु यह स्पष्ट है कि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थवार्तिककार जानकारी में स्थानांग नहीं था । इसी प्रकार धवला, जयधवला और अंग प्रज्ञप्ति के लेखकों के समक्ष या उनकी जानकारी में भी वर्तमान स्थानांग नहीं था, किन्तु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org