Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 41
यस्मिन् वा सतिं स निकायो मोक्षः तं प्रतिपन्नः निकायप्रतिपन्नः तत्कारणस्य सम्यग्दर्शनादेः स्वशक्त्याऽनुष्ठानात्" (आचारांगवृत्ति, पृ. 38) अर्थात् जिसमें से औदारिकादि शरीर निकल गये हैं अथवा जिसकी उपस्थिति में औदारिकादि शरीर निकल गये हैं वह निकाय अर्थात् मोक्ष है। जिसने मोक्ष की साधना स्वीकार की है वह "निकायप्रतिपन्न" है। चूर्णिकार ने पाठान्तर देते हुए केवल "निकाय' पाठ को स्वीकार किया है तथा उसका अर्थ इस प्रकार किया है : “णिकाओ णाम देसप्पदेसबहुत्तं णिकायं पडिवज्जति जहा आऊजीवा अहवा णिकायं णिच्चं मोक्खं मग्गं पडिवन्नो" (आचारांग चूर्णि, पृ. 25) अर्थात् णिकाय का अर्थ है देशप्रदेश-बहुत्व । जिस अर्थ में जैन प्रवचन में "अत्थिकाय' _ "अस्तिकाय" शब्द प्रचलित है उसी अर्थ में "निकाय' शब्द भी स्वीकृत है, ऐसा चूर्णिकार का कथन है। जिसने पानी को निकायरूप - जीवरूप स्वीकार किया है वह निकायप्रतिपन्न है अथवा निकाय का अर्थ है मोक्ष । वृत्तिकार ने केवल मोक्ष अर्थ को स्वीकार कर "नियाग" अथवा "निकाय' शब्द का विवेचन किया है। . "महावीहि'' एवं "महाजाण' शब्दों का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार तथा वृत्तिकार दोनों ने इन शब्दों को मोक्षमार्ग का सूचक अथवा मोक्ष के साधनरूप सम्यग्दर्शन ज्ञान-तप आदि का सूचक बताया है। महावीहि अर्थात् महावीथि एवं महाजाण अर्थात् महायान। "महावीहि" शब्द सूत्रकृतांग के वैतालीय नामक द्वितीय अध्ययन के प्रथम उद्देशक की 21वीं गाथा में भी आता है :- "पणया वीरा महावीहिं सिद्धिपह" इत्यादि। यहाँ "महावीहि" का अर्थ "महामार्ग' बताया गया है और उसे “सिद्धिपह" अर्थात् “सिद्धिपथ" के विशेषण के रूप में स्वीकार किया गया है । इस प्रकार आचारांग में प्रयुक्त "महावीहि'' शब्द का जो अर्थ है वही सूत्रकृतांग में प्रयुक्त "महावीहि" शब्द का भी है । "महाजाण-महायान"
शब्द जो कि जैन परम्परा में मोक्षमार्ग का सूचक है, बौद्ध दर्शन के एक भेद के रूप - में भी प्रचलित है। प्राचीन बौद्ध परम्परा का नाम हीनयान है और बाद की नयी बौद्ध परम्परा का नाम महायान है।
प्रस्तुत सूत्र में "वीर" व "महावीर" का प्रयोग बार-बार आता है। ये
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