Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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50 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
महावीर के लिए प्रयुक्त सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अनंतज्ञानी, केवली आदि शब्द आचार्य हरिभद्र के कथनानुसार भगवान् के आत्मप्रभाव, वीतरागता एवं क्रान्तदर्शितादूरदर्शिता के सूचक हैं। बाद में जिस अर्थ में ये शब्द रूढ हुए है एवं शास्त्रार्थ का विषय बने हैं उस अर्थ में वे उनके लिए प्रयुक्त हुए प्रतीत नहीं होते । प्रत्येक महापुरूष जब सामान्य चर्या से ऊँचा उठ जाता है - असाधारण जीवनचर्या का पालन करने लगता है तब भी वह मनुष्य ही होता है। तथापि लोग उसके लिए लोकोत्तर शब्दों का प्रयोग प्रारम्भ कर देते हैं और इस प्रकार अपनी भक्ति का प्रदर्शन करतें हैं। उत्तम कोटि के विचारक उस महापुरूष का यथाशक्ति अनुसरण करते हैं जबकि सामान्य लोग लोकोत्तर शब्दों द्वारा उनका स्तवन करते हैं, पूजन करते हैं, महिमा गाकर प्रसन्न होते हैं।
कुछ सुभाषित :- आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की समीक्षा समाप्त करने के पूर्व उसमें आने वाले कुछ सूक्त अर्थसहित नीचे दिये जाने आवश्यक हैं। वे इस प्रकार हैं :
1. पणया वीरा महावीहि
2. जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अणुपालिया
3. धीरे मुहुत्तमवि नो पमायए
4. वओ अच्चेइ जोव्वणं च
5. खणं जाणाहि पंडिए
6. सव्वे पाणा पियाउया
सुहसाया दुक्खपडिकूला
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: वीर पुरूष महामार्ग की ओर अग्रसर होते हैं।
: जिस श्रद्धां के साथ निकला उसी
का पालन कर |
: धीर पुरूष एक मुहूर्त के लिए भी प्रमाद न करे।
: वय चला जा रहा है और यौवन भी।
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हे पंडित ! क्षण को समय को
:
समझ।
: सब प्राणियों को आयुष्य प्रिय है।
सुख अच्छा लगता है, दुःख अच्छा
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