Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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68 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
15. पृ. 253-255 16. मूलशब्द "पायपुंछण'' है। प्राकृत भाषा में "पुंछ'' धातु परिमार्जन
अर्थ में आता है। देखिए - प्राकृत व्याकरण, 8.4. 104, संस्कृत भाषा का "मृज्' धातु और प्राकृत भाषा का "पुंछ" धातु समानार्थक हैं। अतः "पायपुंछण" शब्द का संस्कृत रूपान्तर "पादमार्जन' हो सकता है। जैन परम्परा में "पुजंणी' नाम का एक छोटा सा उपकरण प्रसिद्ध है। इसका सम्बन्ध भी "पुंछ" धातु से है और यह उपकरण पंरिमार्जन के लिए ही उपयुक्त होता है। "अंगोछा" शब्द का सम्बन्ध भी "अंगपुंछ" शब्द के साथ है। “पोंछना" क्रियापद इस "पुंछ" धातु
से ही सम्बन्ध रखता है - पोंछना माने परिमार्जन करना। 17. आचारांग, 1.3.3 18. वही 1 4.4 19. प्रकरण 2, श्लोक 6
आचारांग, 1.5.6 21. केनोपनिषद्, ख 1, श्लो. 3
कठोपनिषद्, अ 1, श्लो. 14
वृहदारण्यक, ब्राह्मण 8, श्लोक 8 24. माण्डुक्योपनिषद्, श्लोक 7.
तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्द वल्ली 2, अनुवाक 4। 26. ब्रह्मविद्योपनिषद्, श्लोक 81-911
आचारांग, 1.6.3 । अवेस्ता के लिए देखिए - गाथाओं पर नवो प्रकाश, पृ. 448, 462, 464, 823 वेद के लिए देखिए - ऋग्वेद मंडल 2, सूक्त 23, मंत्र 9 तथा सूक्त
11, मंत्र 1 29. जैन शासन के क्रियाकांड में परिवर्तन करने वाले और स्थानकवासी
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