Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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66 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
3.
(अं) हिन्दी छायानुवाद – गोपालदास जीवाभाई पटेल, श्वे स्था जैन
कॉन्फ्रेन्स, बम्बई, वि सं 1994 (अः) प्रथम श्रुतस्कन्ध का बंगाली अनुवाद-हीराकुमारी, जैन श्वे.
तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, वि.सं. 2009 ... सप्तमे त्वयम्- संयमादिगुणयुक्तस्य कदाचिद् मोहसमुत्थाः परीषहा उपसर्गा वा प्रादुर्भवेयुः ते सम्यक् सोढव्याः - पृ.9. मूल में सेज्या व जिज्जा शब्द है। इसका संस्कृत रूप "सद्या" मानना विशेष उचित होगा। निषद्या और सद्या ये दोनों समानार्थक शब्द हैं तथा सदन, सद्म आदि शब्द वसति-निवास स्थान के सूचक हैं परन्तु प्राचीन लोगों ने सेज्जा व सिज्जा का संस्कृत रूप "शय्या" स्वीकार किया है। हेमचन्द्र जैसे प्रखर प्रतिभाशाली वैयाकरण ने भी "शय्या का "सेज्जा" बनाने का नियम दिया है। सदन, सद्म और सद्या ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं। आगमों को पुस्तकारूढ करने वाले आचार्य का नाम देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण है। अमुक गीतार्थ पुरूष को "गणी" और "क्षमाश्रमण" कहा जाता है। जैसे विशेषावश्यकभाष्य के प्रणेता जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण हैं वैसे ही उच्चकोटि के गीतार्थ देवर्द्धि भी गणिक्षमाश्रमण हैं। इनकी गुरूपरंपरा का क्रम कल्पसूत्र की स्थविरावली में दिया हुआ है। इनको किसी भी ग्रन्थकार ने वाचकवंश में नहीं गिनाया। अतः वाचकों से ये गणिक्षमाश्रमण अलग मालूम होते हैं और वाचकवंश की परम्परा अलग मालूम होती है। नन्दिसूत्र के प्रणेता देववाचक नाम के आचार्य हैं। उनकी गुरू परम्परा नन्दिसूत्र की स्थविरावली में दी है ओर वे स्पष्टरूप से वाचकवंश की परंपरा में है अतः देववाचक और देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण अलग-अलग आचार्य के नाम हैं तथा किसी प्रकार से कदाचित गणिक्षमाश्रमण पद और वाचक पद भिन्न नहीं है। ऐसा मानने पर भी इन दोनों आचार्यों की
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