Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 65
है वह सर्वज्ञ है- उसका ज्ञान निर्दोष है। जिसमें सरागता है वह अल्पज्ञ है - उसका ज्ञान सदोष है।
सन्दर्भ :
1. (अ) प्रथम श्रुतस्कन्ध - W. Schubring, Leipzig, 1910, जैन
साहित्य संशोधक समिति; पूना, सन् 1924 (आ) नियुक्ति तथा शीलांक, जिनहंस व पार्श्वचन्द्र की टीकाओं
के साथ, धनपत सिंह, कलकत्ता, वि सं 1936 (ई) नियुक्ति व शीलांक की टीका के साथ - आगमोदय समिति,
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Oxford 1884. (उ) मूल - H. Jacobi, Pali Text Society, London
1882. (ऊ) प्रथम श्रुतस्कन्ध का जर्मन अनुवाद - Worte Mahavira,
W. Schuring, Leipzig; 1926. (ऋ) गुजराती अनुवाद - रवजीभाई देवराज, जैन प्रिंटिंग प्रेस,
अहमदाबाद, सन् 1902 व 1906 (ए) गुजराती छायानुवाद – गोपालदास जीवाभाई पटेल, नवजीवन ... कार्यालय, अहमदाबाद, वि सं 1992 . (ऐ) हिन्दी अनुवाद सहित - अमोलकऋषि, हैदराबाद, वी सं
2446 (ओ) प्रथम श्रुतस्कन्ध का गुजराती अनुवाद - मुनि सौभाग्यचन्द्र
(संतबाल) महावीर साहित्य प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद, सन्
1936 (औ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ ___ - मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन
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1957,
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