Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 61
मलमूलविसर्जन :- द्वितीय चूलिका के उच्चार – प्रस्रवणनिक्षेप नामक दसवें अध्ययन में बताया गया है कि भिक्षु को अपना टट्टी - पेशाब कहाँ व कैसे डालना चाहिए? ग्रन्थ की योजना करने वाले ज्ञानी एवं अनुभवी पुरूष यह जानते थे कि यदि मलमूल उपयुक्त स्थान पर न डाला गया तो लोगों के स्वास्थ्य की हानि होने के साथ ही साथ अन्य प्राणियों को कष्ट पहुँचेगा एवं जीवहिंसा में वृद्धि होगी। जहाँ व जिस प्रकार डालने से किसी भी प्राणी के जीवन की विराधना की आशंका हो वहाँ व उस प्रकार भिक्षु को मलमूत्रादिक नहीं डालना चाहिए।
शब्दश्रवण व रूपदर्शन :- आगे के दो अध्ययनों में बताया गया है कि किसी भी प्रकार के मधुर शब्द सुनने की भावना से अथवा कर्कश शब्द न सुनने की इच्छा से भिक्षु को गमनागनम नहीं करना चाहिए। फिर भी यदि सुनने ही पड़े तो समभावपूर्वक सुनना व सहन करना चाहिए। यही बात मनोहर व अमनोहर रूपादि के विषय में भी है। इन अध्ययनों में सूत्रकार ने विविध प्रकार के शब्दों व रूपों पर प्रकाश डाला है। . - परक्रियानिषेध :- इनसे आगे के दो अध्ययनों में भिक्षु के लिए परक्रिया अर्थात् किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके शरीर पर की जाने वाली किसी भी प्रकार की क्रिया, यथा श्रृंगार, उपचार आदि स्वीकार करने का निषेध किया गया है। इसी प्रकार भिक्षु - भिक्षु के बीच की अथवा भिक्षुणी-भिक्षुणी के बीच की परक्रिया भी
निषिद्ध है। ... महावीर-चरित :- भावना नामक तृतीय चूलिका में भगवान् महावीर का - चरित्र है। इसमें भगवान का स्वर्गच्यवन, गर्भापहार, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण वर्णित है। आषाढ़ शुल्का षष्ठी के दिन हस्तोत्तरा नक्षत्र में भारतवर्ष के दक्षिण ब्राह्मणकुंडपुर ग्राम में भगवान स्वर्ग से मृत्युलोक में आये। तदनन्तर भगवान के हितानुकम्पक देव ने उनके गर्भ को आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन हस्तोत्तरा नक्षत्र में उत्तर – क्षत्रियकुंडपुर ग्राम में रहने वाले ज्ञातक्षत्रिय काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ की वासिष्ठगोत्रीया त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि से बदला और त्रिशला के गर्भ को दक्षिण ब्राह्मणकुण्डपुर ग्राम में रहने वाली जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की
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