Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया 59 उस ओर विहार नहीं करना चाहिए क्योंकि ये लोग धर्म से अनभिज्ञ होते हैं तथा अकालभोजी, असमय में घूमने वाले, असमय में जगने वाले एवं साधुओं से द्वेष रखने वाले होते हैं। इसी प्रकार भिक्षु राजा - रहित राज्य, गणराज्य (अनेक राजाओं वाला राज्य), अल्पवयस्कराज्य (कम उम्र वाले राजा का राज्य), द्विराज्य (दो राजाओं का संयुक्त राज्य) एवं अशान्त राज्य (एक दूसरे का विरोधी राज्य) की ओर भी विहार न करे क्योंकि ऐसे राज्यों में जाने से संयम की विराधना होने का भय रहता है। जिन गाँवों की दूरी बहुत अधिक हो अर्थात् जहाँ दिन भर चलते रहने पर भी एक गाँव से दूसरे गाँव न पहुँचा जाता हो उस ओर विहार करने का भी निषेध किया गया है। मार्ग में नदी आदि आने पर उसे नाव की सहयता के बिना पार न कर सकने
स्थिति में ही भिक्षु नाव का उपयोग करे, अन्यथा नहीं। पानी में चलते समय अथवा नाव से पानी पार करते समय पूरी सावधानी रखे। यदि दो-चार कोस के घेरे में भी स्थलमार्ग हो तो जलमार्ग से न जाय । नाव में बैठने पर नाविक द्वारा किसी प्रकार सेवा माँगी जाने पर न दे किन्तु मौनपूर्वक ध्यान परायण रहे। कदाचित् नाव में बैठे हुए लोग उसे पकड़ कर पानी में फेंकने लगें तो वह उन्हें कहे कि आप लोग ऐसा न करिये। मैं खुद ही पानी में कूद जाता हूँ। फिर यदि लोग पकड़ कर फेंक दे तो समभावपूर्वक पानी में गिर जाये एवं तैरना आता हो तो शान्ति से तैरते हुए बाहर निकल जाय। विहार करते हुए मार्ग में चोर मिले और भिक्षु से कहे कि ये कपड़े हमें दे दो तो वह उन्हें कपड़े न दे। छीनकर ले जाने की स्थिति में दयनीयता न दिखावे और न किसी प्रकार की शिकायत ही करे।
• भाषा प्रयोग :- भाषाजात नामक चतुर्थ अध्ययन में भिक्षु की भाषा का विवेचन है। भाषा के विविध प्रकारों में से किस प्रकार की भाषा का प्रयोग • भिक्षु को करना चाहिए, किसके साथ कैसी भाषा बोलनी चाहिए, भाषा - प्रयोग में किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये इन सब पहुलओं पर पर्याप्त
प्रकाश डाला गया है।
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वस्त्रधारण :- वस्त्रैषणा नामक पंचम प्रकरण में भिक्षु के वस्त्रग्रहण व वस्त्रधारण का विचार है। जो भिक्षु तरूण हो, बलवान् हो, रूग्ण न हो उसे एक
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