Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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60 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
वस्त्र धारण करना चाहिए, दूसरा नहीं। भिक्षुणी को चार संघटियाँ धारण करनी चाहिये जिनमें से एक दो हाथ चौडी हो, दो तीन हाथ चौड़ी हों और एक चार हाथ चौड़ी हो। श्रमण किस प्रकार के वस्त्र धारण करे? जंगिय - ऊँट आदि की ऊन से बना हुआ, भंगिय - द्वीन्द्रिय आदि प्राणियों की लार से बना हुआ, साणिय-सनकी छाल से बना हुआ, पोत्तग - ताडपत्र के पत्तों से बना हुआ, खोमिय - कपास का बना हुआ एवं तूलकंड - आक आदि की रूई से बना हुआ वस्त्र श्रमण काम में ले सकता है। पतले, सुनहले, चमकते एवं बहूमूल्य वस्त्रों का उपयोग श्रमण के लिये वर्जित है ब्राह्मणों के वस्त्र के उपयोग के विषय में मनुस्मृति (अ. 2, श्लो. 40-41) में एवं बौद्ध श्रमणों के वस्त्रोपयोग के सम्बन्ध में विनयपिटकं (पृ. 275) में प्रकाश डाला गया है। ब्राह्मणों के लिए निम्नोक्त छः प्रकार के वस्त्र अनुमत है। : कृष्णमृग, रूरू (मृगविशेष) एवं छाग (बकरा) का चमड़ा, सन, क्षुमा (अलसी) एवं मेष (भेड़) के लोम से बना वस्त्र। बौद्ध श्रमणों के लिए निम्नोक्त छः प्रकार के वस्त्र विहित है :कौशेय - रेशमी वस्त्र, कंबल, कोजव - लंबे बाल वाला कंबल, क्षौम-अलसी की छाल से बना हुआ वस्त्र, शाण - सन की छाल से बना हुआ वस्त्र, भंग-भंग की छाल से बना हुआ वस्त्र। जैन भिक्षुओं के लिए जंगिय आदि उपर्युक्त छ: प्रकार के वस्त्र ग्राह्य हैं। बौद्ध भिक्षुओं के लिए बहुमूल्य वस्त्र न लेने के सम्बन्ध में कोई विशेष नियम नहीं है। जैन श्रमणों के लिए कंबल, कोजव एवं बहुमूल्य वस्त्र के उपयोग का स्पष्ट निषेध है।
पात्रैषणा :- पात्रैषणा नामक षष्ठ अध्ययन में बताया गया है कि तरूण, बलवान् एवं स्वस्थ्य भिक्षु को केवल एक पात्र रखना चाहिए। यह पात्र अलाबु, काष्ठ अथवा मिट्टी का हो सकता है। बौद्ध श्रमणों के लिए मिट्टी व लोहे के पात्र का उपयोग विहित है, काष्ठादि के पात्र का नहीं।
अवग्रहेषणा :- अवग्रहेषणा नामक सप्तम अध्ययन में अवग्रहविषयक विवेचन है। अवग्रह अर्थात् किसी के स्वामित्व का स्थान। निर्ग्रन्थ भिक्षु किसी स्थान में ठहरने के पूर्व उसके स्वामी की अनिवार्यरूप से अनुमति ले । ऐसा करने पर उसे अदत्तादान-चोरी करने का दोष लगता है।
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