Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 13
वर्तमान में 44 उद्देशक ही उपलब्ध हैं। निर्युक्तिकार ने इन सब उद्देशकों का विषयानुक्रम बताया है।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध की चूलिकाएँ :- आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध पाँच चूलिकाओं में विभक्त है। इनमें से प्रथम चार चूलिकाएँ तो आचारांग में ही हैं किन्तु पाँचवीं चूलिका विशेष विस्तृत होने के कारण आचारांग से भिन्न कर दी गई है जो निशीथसूत्र के नाम से एक अलग ग्रन्थ के रूप में उपलब्ध है। नन्दिसूत्रकार ने कालिक सूत्रों की गणना में " निसीह" नामक जिस शास्त्र का उल्लेख किया है वह आचाराग्र-आचार-चूलिका का यही प्रकरण हो सकता है। इसका दूसरा नाम आचारकल्प अथवा आचारप्रकल्प भी है जिसका उल्लेख निर्युक्ति, स्थानांग व समवायांग में मिलता है।
आचाराग्र की चार चूलिकाओं में से प्रथम चूलिका के सात अध्ययन हैं :1. पिण्डैषणा, 2. शय्यैषणा, 3. ईर्येषणा, 4. भाषाजातैषणा, 5. वस्त्रैषणा, 6. पात्रैषणा, 7. अवग्रहैषणा। द्वितीय चूलिका के भी सात अध्ययन है :- 1. स्थान, 2. निषीधिका, 3. उच्चारप्रस्रवण, 4. शब्द, 5. रूप, 6. परिक्रिया, 7. अन्योन्यक्रिया । तृतीय चूलिका में भावना नामक एक ही अध्ययन है चतुर्थ चूलिका में भी एक ही अध्ययन है जिसका नाम विमुक्ति है। इस प्रकार चारों चूलिकाओं में कुल सोलह अध्ययन है। इन अध्ययनों के नामों की योजना तदन्तर्गत विषयों को ध्यान में रखते हुए नियुक्तिकार ने की प्रतीत होती है। पिण्डैषणा आदि समस्त नामों का विवेचन निर्युक्तिकार ने निक्षेपपद्धति द्वारा किया है । पिण्ड का अर्थ है आहार, शय्या का अर्थ है निवासस्थान, ईर्या का अर्थ है गमनागमन प्रवृत्ति, भाषाजात का अर्थ है भाषासमूह, अवग्रह का अर्थ है गमनागमन की स्थानमर्यादा । वस्त्र, पात्र, स्थान शब्द व रूप का वही अर्थ है जो सामान्यतया प्रचलित है। निषीधिका अर्थात् स्वाध्याय एवं ध्यान करने का स्थान, उच्चारप्रस्रवण अर्थात् दीर्घशंका एवं लघुशंका, परक्रिया अर्थात् दूसरों द्वारा की जानेवाली सेवाक्रिया, अन्योन्यक्रिया अर्थात् परस्पर की जाने वाली अनुचित क्रिया, भावना अर्थात् चिन्तन, विमुक्ति अर्थात् वीतरागता ।
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