Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 15
चतुर्थ चूलिका में केवल ग्यारह गाथाएँ हैं जिनमें विभिन्न उपमाओं द्वारा वितराग के स्वरूप का वर्णन किया गया है। अन्तिम गाथा में सबसे अन्त में "विमुच्चइ'' क्रियापद है। इसी को दृष्टि में रखते हुए इस चूलिका का नाम विमुक्ति रखा गया है। ___ एक रोचक कथा :- उपर्युक्त चार चुलिकाओं में से अन्तिम दो चूलिकाओं के विषय में एक रोचक कथा मिलती है। यद्यपि नियुक्तिकार ने यह स्पष्ट बताया है कि आचाराग्र की पाँच चूलिकाएँ स्थविरकृत हैं फिर भी आचार्य हेमचन्द्र ने तृतीय व चतुर्थ चूलिका के सम्बन्ध में एक ऐसी कथा दी है जिसमें इनका सम्बन्ध महाविदेह क्षेत्र में विराजित सीमंधर तीर्थंकर के साथ जोड़ा गया है। यह कथा परिशिष्ट पर्व के नवम सर्ग में है। इसका सम्बन्ध स्थूलभद्र के भाई श्रियक की कथा से है। श्रियक की बड़ी बहन साध्वी यक्षा के कहने से श्रियक ने उपवास किया और वह मर गया। श्रियक की मृत्यु का कारण यक्षा अपने को मानती रही। किन्तु वह श्रीसंघ द्वारा निर्दोष घोषित की गई एवं उसे श्रियक की हत्या का कोई प्रायश्चित नहीं दिया गया। यक्षा श्रीसंघ के इस निर्णय से सन्तुष्ट न हुई। उसने घोषणा की कि जिन भगवान् खुद यदि यह निर्णय दें कि मैं निदोष हूँ तभी मुझे सन्तोष हो सकता है। तब समस्त श्रीसंघ ने शासनदेवी का आव्हान करने के लिए काउसग्ग-कार्यात्सर्ग- ध्यान किया। ऐसा करने पर तुरन्त शासनदेवी उपस्थित हुई एवं साध्वी यक्षा को अपने साथ महाविदेह क्षेत्र में विराजित सीमंधर भगवान् के पास ले गई। सीमंधर भगवान् ने उसे निर्दोष घोषित किया एवं प्रसन्न होकर श्रीसंघ के लिए निम्नोक्त चार अध्ययनों का उपहार दियाः भावना, विमुक्ति, रतिकल्प और विचित्रचर्या। श्रीसंघ ने यक्षा के मुख से सुनकर प्रथम दो अध्ययनों को आचारांग की चूलिका के रूप में एवं अन्तिम दो अध्ययनों को दशवैकालिक की चूलिका के रूप में जोड़ दिया।
हेमचन्द्रसूरि लिखित इस कथा के प्रामाण्य-अप्रामाण्य के विषय में चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने यह घटना कहाँ से प्राप्त की, यह अवश्य शोधनीय है। दशवेकालिक-नियुक्ति, आचारांग-नियुक्ति, हरिभद्रकृत दशवैकालिक-वृत्ति, शीलांककृत आचारांग-वृत्ति आदि में इस घटना का कोई उल्लेख नहीं है।
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