Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 21 सम्भावना बहुत कम हो गई। देवर्द्धिगणिक्षमा श्रमण ने किसी प्रकार की नई वाचना का प्रवर्तन नहीं किया अपितु जो श्रुतपाठ पहले की वाचनाओं में निश्चित हो चुका था उसी को एकत्र कर व्यवस्थित रूप से ग्रन्थबद्ध किया । एतद्विषयक उपलब्ध उल्लेख इस प्रकार हैं :
वलहिपुरम्मि नयरे देवड्ढिपमुहेण समणसंघेण । पुत्थई आगमु लिहिओ नवसयअसीआओ वीराओ ॥
अर्थात् वलभीपुर नामक नगर में देवर्द्धिप्रमुख श्रमणसंघ ने वीरनिर्वाण 980 ( मतान्तर से 993) में आगमों को ग्रन्थबद्ध किया ।
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण :- वर्तमान समस्त जैन प्रबन्ध - साहित्य में कहीं भी देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण जैसे महाप्रभावक आचार्य का सम्पूर्ण जीवन - वृत्तान्त उपलब्ध नहीं होता। इन्होंने किन परिस्थितियों में आगमों को ग्रन्थबद्ध किया? उस समय अन्य कौन श्रुतधर पुरूष विद्यमान थे? वलभीपुर के संघ ने उनके इस कार्य में किस प्रकार की सहायता की? इत्यादि प्रश्नों के समाधान के लिए वर्तमान में कोई भी सामग्री उपलब्ध नहीं है। आश्चर्य तो यह है कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में होने वाले आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपने प्रभावक - चरित्र में अन्य अनेक महाप्रभावक पुरूषों का जीवन चरित्र दिया है किन्तु इनका कहीं निर्देश भी नहीं किया है।
देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रन्थबद्ध करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखी। जहाँ-जहाँ शास्त्रों में समान पाठ आये वहाँ-वहाँ उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया, , जैसे:" जहा उववाइए" " जहा पण्णवणाए" इत्यादि । एक ही ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हुए " जाव" शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया, जैसे- "णागकुमारा जाव विहरंति", "तेणं कालेणं जाव परिसा णिग्गया" इत्यादि । इसके अतिरिक्त उन्होंने महावीर के बाद की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ भी आगमों में जोड़ दी । उदाहरण के लिए स्थानांग में उल्लिखित दस गण भगवान् महावीर के निर्वाण के बहुत समय बाद उत्पन्न हुए । यही बात
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