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अनेकान्त 60/1-2
होता है। मार्कण्डेय रचित प्राकृत सर्वस्व में भी वर्णन है कि - "प्रकृतिः संस्कृतम् । तत्र भवं प्राकृतमुच्यते" आदि अनेक ग्रन्थों में ऐसा वर्णन मिलता है। 17
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(ब) छान्दस से प्राकृत की उत्पत्ति :- डा. नेमीचन्द्र शास्त्री जैसे विचारकों का मत है कि संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाएँ किसी एक ही स्रोत से विकसित होने से सहोदरा है। 18 पाश्चात्य-मनीषी डा. ए.सी. वुहलर 19 भी संस्कृत को शिष्ट समाज की भाषा और प्राकृत को जनसाधारण की भाषा मानते हैं । डा. पिशेल ने भी मूल प्राकृत को जनता की भाषा माना है तथा साहित्यिक प्राकृतों को संस्कृत के समान सुगठित भाषा माना है। इससे सिद्ध होता है कि संस्कृत एवं प्राकृत दोनों सहोदरा हैं जिनकी उत्पत्ति वैदिक भाषा या छान्दस् से हुई है 120
प्राकृत से संस्कृत की उत्पत्ति : रुद्रट के काव्यालङ्कार के श्लोक की व्याख्या करते हुए नमिसाधु ने प्राकृत ( अपभ्रंश भी) को सकल भाषाओं का मूल बतलाया गया है तथा उसे संस्कृत एवं अन्य भाषाओं का जनक बतलाया गया है । व्याकरण के नियमों से संस्कार किये जाने के कारण ही संस्कृत कहलाती है।
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गउडवही नामक महाकाव्य में वाक्पतिराज ने भी प्राकृत को महान् समुद्र के समान माना है और समस्त भाषाओं के साथ संस्कृत का जन्म भी प्राकृत से माना है । 21 इसी प्रकार राजशेखर ने भी प्राकृत को संस्कृत की योनि = उत्पत्ति स्थान माना है 22 और प्राकृत के विकास को इस प्रकार प्रकट किया है, कि - 1. प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम् । 2. प्रकृतीनां साधरणजनानामिदं प्राकृतम् । 3. प्राक् कृतं प्राकृतम् । इन व्युत्पत्तियों से प्राकृत वैदिक भाषा की जननी भी सिद्ध होती है ।
प्राकृत को ही आदि भाषा मानते हुए केतकर का मानना है किवैदिक भाषा का निर्माण प्राकृत से हुआ है। प्राकृतों के विविध रूपों में से एक रूप वैदिक भाषा का रूप लिया। कालक्रम में वैदिक का