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अनेकान्त 60/1-2
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: सर
समीक्षा समीक्ष्य कृति : सफर की हमसफर परिशोध एवं संकलन : डॉ. मूलचन्द जैन प्रकाशन
: प्राच्य श्रमण भारती, 12 ए प्रेमपुरी
मुजफ्फरनगर साइज एवं पृष्ठ संख्या : डिमाई 23_36/16, 100 मूल्य
: रू. 10.00 डॉ० मूलचन्द जैन द्वारा लित एवं परिशोधित कृति “सफर की हमसफर” में चालीस लघु किन्तु प्रेरणाप्रद कहानियाँ हैं, जो घर में हों या बाहर, हवाई जहाज में हों या रेलगाड़ी अथवा बस में सब जगह साथ रखकर स्वयं पढ़ने योग्य तथा साथियों/सहयात्रियों को पढ़वाने योग्य हैं। आप इन्हें पढ़कर निश्चित रूप से वाह-वाह कह उठेंगे तथा जिसे पढ़वायेंगे, उससे भी वाह-वाही लूटेंगे। ये कहानियाँ आबाल वृद्ध सभी व्यक्तियों की उदासी एवं बेचैनी मिटाकर चैन तो प्रदान करेंगी ही, सन्मार्ग का भी प्रदर्शन करेंगी।
कहानी संकलन में संकलित कहानी 'क्षमा मांगे किससे' से सुस्पष्ट हो जाता है कि युद्ध में बन्दी बनाकर भी जिसे नहीं जीता जा सकता है, उसे भी क्षमा से जीतना संभव है। 'सासू बनो तो ऐसी' उन सभी सासों को अवश्य पढ़ना चाहिए जो बहू से तो आशा करती हैं कि वह उन्हें माँ माने, पर बहू को बेटी मानकर व्यवहार नहीं करना चाहती हैं। जो बहू-बेटी में अन्तर करके घर को नरक बनाने का स्वयं उपक्रम करती हैं तथा बाद में स्वयं नारकीय दुःखों को अपने ही घर में भोगने को मजबूर होती हैं। 'सात कौड़ी में राज्य' कहानी यह शिक्षा देने में समर्थ है कि यदि लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय है तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी। 'कहाँ तो राग- कहाँ वैराग्य' में लेखक ने इस भाव को प्रकट किया है कि भले ही मोहनीय कर्म विचित्र नाच नचाने में समर्थ हो किन्तु अदम्य पुरुषार्थ द्वारा तप एवं ध्यान से मोहनीय कर्म से भी छुटकारा पाया जा सकता है। कहानी ‘आहारदान का कमाल' एवं 'रात्रि भोजन बिल्कुल नहीं' अपने नाम के अनुरूप कथ्य के प्रभाव को पाठकों पर डालने में समर्थ हैं। 'क्या करने जा रही हो' कहानी बालिकाओं के भ्रूण की हत्यारी माताओं का दिल दहलाकर उन्हें इस महापाप से बचाने की प्रेरणा प्रदान करती है तो 'जरा से परिग्रह का नजारा' कहानी अनायास ही परिग्रह त्याग का