Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 242
________________ अनेकान्त 60/4 उनका त्याग कर देता है, वह निर्दोष अहिंसा व्रत का पालन करता है। 35 तत्त्वार्थवार्तिक में कहा गया है कि पूर्वकथित दिव्रत, देशव्रत तथा उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत में व्रती ने जी मर्यादा ली है, उसमें भी वह निष्प्रयोजन गमन आदि न करे एवं विषयसेवन आदि न करे, इसी कारण मध्य में अनर्थदण्डव्रत का ग्रहण किया गया है । 36 40 यतः अनर्थदण्डव्रत श्रावक की निष्प्रयोजन पापपूर्ण प्रवृत्तियों का त्याग कराके व्रतों को निर्दोष पालने में सहकारी है तथा ये व्रतों में वृद्धि करते है, अतः अनर्थदण्ड के त्याग रूप इस गुणव्रत का श्रावक के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है । अनर्थदण्डव्रतों के पालन से व्यर्थ के पापबन्ध से बचा जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण आज विश्व की भीषणतम समस्या बन गई है। पृथिवी की निरन्तर खुदाई, जल का प्रदूषण, अग्नि का अनियन्त्रित प्रयोग, वायु को प्रदूषित किया जाना, रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों से दूषित अन्न एवं वनस्पतियों के प्रयोग ने आज पर्यावरण को अत्यन्त प्रदूषित कर दिया है। यदि विश्व के आधिकांश मानव प्रमादचर्या न करें, निष्प्रयोजन भूमि को न खोदें, आवश्यकता से अधिक जलस्रोतों का उपयोग न करें तथा जलाशयों एवं नदियों के पानी को कारखानों के विषैले दूषित जल से बचावें, कोयला, मिट्टी का तैल, डीजल, पेट्रोल, लकड़ी के जलाने आदि को सीमित करलें, विभिन्न गैसों से वायु प्रदूषित न होने दें और व्यर्थ में पेड़-पौधों को न काटें तो सहज ही पर्यावरण प्रदूषण की भयावह समस्या से बचा जा सकता है । अनर्थदण्डव्रतों का निर्दोष परिपालन लौकिक दृष्टि से भी पर्यावरण समस्या को निराकृत करने में पूर्णतया समर्थ है। सन्दर्भ : 1. तत्त्वार्थसूत्र, 7/1. 2. सर्वार्थसिद्धि, 7/1 3. सागारधर्मामृत, 2/80. 4. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 67.

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