Book Title: Anekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 249
________________ अनेकान्त 60/4 की क्रियाओं को छोड़कर रात्रि-दिन सदा ही खाया करता है, उसे ज्ञानी पुरुष सींग, पूंछ और खुर के संग से रहित पशु कहते हैं। बुद्धिमान लोग तो दिन में भोजन, रात्रि में शयन, ज्ञानियों के मध्य में अवसर पर संभाषण और गुरुजनों में किया गया पूजन शांति के लिए मानते हैं। वसुनन्दि श्रावकाचार में रात्रि भोजन के दोषों का वर्णन करते हुए लिखा है रात्रि को भोजन करने वाले मनुष्य के ग्यारह प्रतिमाओं में से पहली भी प्रतिमा नहीं ठहरती है, इसलिए नियम से रात्रि भोजन का परिहार करना चाहिए। भोजन के मध्य गिरा हुआ चर्म, अस्थि, कीट पंतग सर्प और केश आदि रात्रि के समय कुछ भी नहीं दिखाई देता है है और इसलिए रात्रिभोजी पुरुष सबको खा लेता है। यदि दीपक जलाया जाता है, तो भी पतंगे आदि अगणित चतुरिन्द्रिय जीव दृष्टिराग से मोहित होकर भोजन के मध्य गिरते हैं। इस प्रकार के कीट-पतंग युक्त आहार को खाने वाला पुरुष इस लोक में अपनी आत्मा का या अपने आप का नाश करता है और परभव में चतुर्गति रूप संसार के दुःखों को पाता है। ___ धर्मसंग्रह श्रावकाचार में लिखा है जिन पुरुषों ने अहिंसाणुव्रत धारण किया है उन्हें उस व्रत की रक्षा के लिए और व्रत को दिनों दिन विशुद्ध (निर्मल) करने के लिए रात्रि में चार प्रकार के आहार का त्याग करना चाहिए। जो पुरुष दो घटिका दिन के पहले भोजन करते हैं वे रात्रि भोजन त्याग व्रत के धारक कहे जाते हैं इसके बाद जो भोजन करते हैं वे अधम हैं। रात्रि भोजन से शरीर सम्बन्धी हानियां भी होती हैं। रात्रि में भोजन करते समय मक्खी यदि खाने में आ जाये तो उससे वमन होता है। यदि केश (बाल) खाने में आ जाये तो उससे स्वरभंग होता है। यदि यूक (जूवा) खाने में आ जाए तो जलोदर आदि रोग उत्पन्न होते हैं और यदि छिपकली खाने में आ जाय तो उससे कोढ आदि उत्पन्न होती है। इसलिए बुद्धिमान पुरुषों को रात्रि-भोजन का त्याग करना चाहिए। जो

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