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अनेकान्त 60/3 प्रथमदेशना स्थल होने के कारण सभी से वन्दनीय है। विपुलाचल राजगृह नगर की नैऋत्य दिशा में है। पूर्व में चतुष्कोण ऋषि शैल दक्षिण में वैभार पर्वत है।
वैभार और विपुलाचल पर्वत त्रिकोण आकृति के हैं। पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशा में फैला हुआ धनुष के आकार का छिन्न नामक पर्वत है, और ईशान में पाण्डु पर्वत है। इस प्रकार पाँच पर्वत से युक्त होने के कारण यह राजगृह नगर पंचशैलपुर कहलाता है।
षट्खण्डागम की धवला टीका में पंच पहाड़ियों के ऋषिगिरि वैभारगिरि, विपुलाचल, चन्द्राचल और पाण्डुगिरि नाम उल्लिखित है। हरिवंश पुराण में पहला पर्वत ऋषिगिरि है। जो राजगृह की पूर्व दिशा में है। दक्षिण में वैभार गिरि त्रिकोण है। नैऋत्य में त्रिकोणाकार विपुलाचल है, इसी पर्वत पर समवशरण आया था इसी पर एकादश गणधरों ने दीक्षा ली थी। पश्चिम वायव्य और उत्तर को घेरे हुये चौथा वहालक, नामक पर्वत है, यह धुनषाकार है।
ईशान दिशा में पाँचवां पाण्डक नामक गोलाकार पर्वत है। इन पर्वतों के वनों में वासुपूज्य स्वामी को छोड़कर शेष समस्त तीर्थकरों के समवशरण हुये। ने वन सिद्धक्षेत्र भी है और कर्म निर्जरा में कारण भी है। ___ वर्तमान पहला पर्वत विपुलाचल है दूसरा रत्नगिरि तीसरा उदयगिरि चौथा स्वर्णगिरि और पांचवां वैभारगिरि है।
पुराणों में राजगृह के पंचशैल पुर, गिरिव्रज, कुशाग्रपुर, क्षिति प्रतिष्ट आदि नाम मिलते है, यहाँ मुनि सुब्रत नाथ के चार कल्याणक सम्पन्न हुये थे। __ भगवान महावीर को ऋजुकूला तट पर केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और प्रथम समवशरण भी यहीं लगा, किन्तु गणधर के अभाव में (जो उनके पाद मल में ही दीक्षित हो) दिव्य ध्वनि नहीं खिरी। भगवान महावीर विहार करते ये राजगह के विपलाचल पर्वत पर पधारे। समवशरण की रचना हई। सौधर्मइन्द्र गणधर को ले आये तब प्रथम देशना राजगह के विपुलाचल पर हुई। सभी को ज्ञानामृत पान करने का सौभाग्य मिला।
- रजवांस जिला सागर म.प्र.