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अनेकान्त 60/3
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थे। माता का नाम विजया देवी और पिता का नाम धनदेव था । तीन सौ पचास शिष्यों के साथ 50 वर्ष की आयु मे दीक्षा ग्रहण की थी । सप्तम गणधर मौर्यपुत्र काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजया देवी था, पंसठ वर्ष की आयु में तीन सौ पचास शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। अष्टम गणधर अकम्पिक मिथला के निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। माता का नाम जयन्ति और पिता का नाम देव था । अड़तालीस वर्ष की आयु में तीन सौ शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। नवम गणधर अचल कौशल निवासी हारीत गौत्रीय ब्राह्मण थे, आपकी माता नंदा और पिता वसु थे। आपने तीन सौ शिष्यों के साथ छियालीस वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की। दशम गणधर मंदार्य वत्सदेश के निवासी काण्डीय गौत्रीय ब्राह्मण थे । माता वरुण और पिता दत्त थे, तीन सौ शिष्यों के साथ 36 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की। एकादश वे गणधर प्रभास राजगृह के निवासी थे। आपकी माता अति भद्रा और पिता बल थे, तीन सौ शिष्यों के साथ 46 वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी ।
भगवान महावीर के सभी ग्यारह गणधर ब्राह्मण विद्वान थे। इनके दीक्षा लेने से जो यज्ञों में हिंसा होती थी, वह बन्द हो गई थी । इन्द्रभृति की दीक्षा के उपरान्त राजगृह के विपुलाचल पर प्रथम देशना का उद्भव श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को हुआ । एत्यावसप्पिणीए चउत्थ कालस्य चरिम भागम्मि । तेत्तीस वास अडमास पण्णरस दिवस सेसम्मि। 168 ।। वासस्स पढ़म मसि सावण णामम्मि बहुल पडिवाय । अभिजीणक्खत्तम्मि य उप्पत्ति धम्म तित्यस्स । 169 ।।
तिलोयपणित भाग-1
अर्थात् अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के अंतिम भाग में तैतीस वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रहने पर वर्ष के श्रावण नामक प्रथम माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन अभिजित नक्षत्र के उदय रहने पर धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई। वीर शासन का प्रारम्भ हुआ। देव विद्याधर और मनुष्य तिर्यञ्चों के मन को प्रसन्न करने वाला वह विपुलाचल