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अनेकान्त 60/4
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह व्रतों का एकदेश पालन करने वाले अणुव्रती श्रावक को अगारी या गृहस्थ तथा पूर्णरूप से पालन करने वाले महाव्रती साधु को अनगारी कहा जाता है। सामान्यतः अगार का अर्थ घर होता है, परन्तु जैनाचार में यह परिग्रह का उपलक्षण है। फलतः परिग्रह का पूरी तरह से त्याग न करने वाले को अगारी कहते हैं तथा परिग्रह का पूर्णतया त्याग करने वाला अनगारी कहलाता है। यद्यपि अगारी के परिपूर्ण व्रत नहीं होते है, तथापि वह अव्रती गृहस्थों की अपेक्षा व्रतों का एकदेश पालन करता है। अतः उसे भी व्रती श्रावक कहा जाता है।
अणुव्रती श्रावक जीवनपर्यन्त के लिए त्रस एवं स्थावर हिंसा का त्याग नही कर पाता है, परन्तु वह संकल्पी त्रस हिंसा का त्यागकर यथासंभव स्थावर जीवों की हिंसा से भी बचता है। भय, आशा, स्नेह या लोभ के कारण ऐसा असत्य संभाषण नही करता है, जो गृहविनाश या ग्रामविनाश आदि का कारण बन सकता हो। वह अदत्त परद्रव्य को ग्रहण नहीं करता है, स्वस्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों को यथायोग्य जननी, भगिनी या सुता के समान समझता है तथा आवश्यकतानुसार धन-धान्य आदि का परिमाण कर संग्रहवृत्ति को नही अपनाता है।
गुणव्रत का स्वरूप ____ अणुव्रती श्रावक के पाँचों अणुव्रतों के परिपालन में गुणकारी दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत इन तीन गुणव्रतों की व्यवस्था है। समन्तभद्राचार्य ने 'अनुबृंहणाद् गुणानामाख्यायन्ति गुणव्रतान्यायः कहकर गुणों को बढ़ाने के कारण इन्हें आर्यों के द्वारा गुणव्रत कहा जाना माना गया है। सागारधर्मामृत में तो स्पष्टतया कहा गया है कि ये तीन व्रत अणुव्रतों के उपकार करने वाले हैं, इसलिए गुणव्रत कहलाते हैं 'यदगुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत।'