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अनेकान्त 60/4
खेत, नदी, वन या योजना तक कहते हैं। गणधरादिक ज्ञानी पुरूष देशावकाशिक व्रत में काल की मर्यादा एक वर्ष, दो मास, छह मास, एक मास, चार मास, एक पक्ष और नक्षत्र तक कहते हैं।
देशव्रत के अतिचार ___ तत्त्वार्थसूत्र में आनयन, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप को देशव्रत के पाँच अतिचार कहे हैं।17 अन्य उत्तरवर्ती ग्रन्थों में देशव्रत या देशावकाशिक व्रत के ये ही पाँच अतिचार माने गये हैं। अपने संकल्पित देश में रहते हुए मर्यादा से बाहर के क्षेत्र की वस्तु को किसी के द्वारा मगाना आनयन, किसी को मर्यादा के क्षेत्र से बाहर भेजकर काम करा लेना प्रेष्य प्रयोग है। मर्यादा के बाहर के पुरुषों को लक्ष्यकर खाँसी, ताली, चुटकी आदि के इशारे से समझाना शब्दानुपात, शरीर, मुख आदि की आकृति दिखाकर इशारा करना रूपानुपात तथा पत्थर, कंकण आदि फेंककर संकेत करना पुद्गलक्षेप नामक अतिचार
है।
देशव्रत का प्रयोजन
समन्तभद्राचार्य ने देशव्रत का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए कहा है कि सीमाओं से परे स्थूल एवं सूक्ष्म रूप पापों का भलीभाँति त्याग हो जाने से देशावकाशिक व्रत के द्वारा भी महाव्रत साधे जाते हैं। इस कथन : से सुस्पष्ट हैं कि श्रावक का देशव्रत महाव्रत का साधन हैं।
दिग्व्रत एवं देशव्रत में अन्तर __ आचार्य अकलंकदेव ने दिग्विरतिः सार्वकालिकीदेशविरतिर्यथाशक्तिः' कहकर कहा है कि दिग्व्रत यावज्जीवन होता है, जबकि देशव्रत यथाशक्ति नियतकाल के लिए होता है। यही दिग्व्रत और देशव्रत में अन्तर है।