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अनेकान्त 603
पंचेव अत्थिकाया छज्जीवणिकाया महव्वयापच । अट्ठयपवयणमादा सहेउओ बंध मोख्खो य।। 39 ।।
धवला पु.9 पृ. 129 अर्थात्- पाँच अस्तिकाय, छहजीव निकाय, पाँच महाव्रत, आठ प्रवचन मात्रा अर्थात् पाँच समिति, तीन गुप्ति तथा सहेतुक बंध और मोक्ष आदि क्या हैं। जब वे इसे समझ न सके तब असमंजस में पढ़कर कहने लगे, चलो तुम्हारे गुरु के समक्ष ही इस गाथा का अर्थ बतलाऊँगा। इन्द्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया।
इन्द्रभूति गौतम पाँच सौ शिष्यों के साथ भगवान महावीर के समवशरण में गये। मानस्तम्भ को देखते ही मान गल गया, मानस्तम्भ प्रकाश स्तम्भ बन गया, मान रहित भावों की विशद्धि सहित महावीर भगवान के दर्शन कर तीन प्रदक्षिणा लगा कर पंच मृष्टियों से अर्थात् पाँच अंगों से भूमि का स्पर्श कर वन्दना करकं संयम को प्राप्त हुये। इन्द्रभूति गौतम ने 50 वर्ष की आय में दीक्षा ग्रहण की और गणधरों में प्रधान बन गये। गणधर की उपस्थिति होने से दिव्य देशना प्रारंभ हो गई। इन्द्रभूति गौतम की दीक्षा का समाचार मगध में विद्युत की तरह फैल गया। अग्निभूति आदि विद्वानों को महान आश्चर्य हुआ, वे इन्द्रभूति का समाचार जानने के लिये विपुलाचल पर पधारे। इन्द्रभृति के भाई अग्नि भूति और वायभूति अपने पाँच-पांच सौ शिष्यों के साथ मानस्तम्भ को देखकर मान गलित होने से अग्निभूति ने 46 वर्ष और वायुभूति ने 42 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहणकर ली और गणधर बन गये। __शुचिदत्त ने 50 वर्ष की आयु में पांच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा ली
और चौथे गणधर बने। आप कोल्लाग सन्निवेश के निवासी थे। माता का नाम बारूणी और पिता का धन मित्र था। सुधर्मा नाम के पाँचवें गणधर कोल्लाग सन्निवेश निवासी अग्नि वैश्यान गौत्र के ब्राह्मण थे इनकी माता भरिरला और पिता धम्मिल्ल थे। पाँच सौ शिष्यों के साथ 50 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की। छठवें गणधर माण्डिक सांख्य दर्शन के समर्थक थे। ये मौर्य सन्निवेश के निवासी वशिष्ट गौत्री ब्राह्मण