________________
अनेकान्त 60/4
मुनि पाँच पापों का सर्वथा सर्वदेश त्याग करके पाँच महाव्रतों का पालन करते हैं। आर्यिकायें उपचार से ही सही, पाँच महाव्रतों का पालन करने में उद्यत रहती हैं। पाँच महाव्रतों में अहिंसा प्रथम महाव्रत है। शेष चार अहिंसा महाव्रत की रक्षा के लिए हैं। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भावहिंसा का विवेचन करते हुए लिखा है कि रागादि भावों की उत्पत्ति न होना अहिंसा है और उन्हीं की उत्पत्ति होना हिंसा है, यह जिनागम का सार है।28 हम कतिपय साधुओं की साधुचर्या पर कोई टिप्पणी करके अघोषित उग्रवाद या आतंकवाद के शिकार बनें या फिर अनधिकारी कहलाकर भक्तों की गालियाँ एवं ताड़ना सहन करें, यह सामर्थ्य अब रही नही है। अतः दिशाबोध अक्टूबर 07 के अंक से कुछ यथार्थ यथावत् उद्धृत करना चाहते हैं। साधु एवं श्रावक स्वयं विचार करें कि क्या यही महाव्रतों का पालन है ? ।
गत वर्ष सम्पन्न श्रवणबेलगोल महामस्तकाभिषेक समारोह से बावनगजा महामस्तकाभिषेक समारोह की तुलना।
मुनिश्री तरुणसागर जी के विगत माह सम्पन्न रजत संयम वर्ष महोत्सव से आचार्य श्री विरागसागर जी के दिसम्बर माह में सम्पन्न होने वाले रजत मुनि दीक्षा समारोह की तुलनात्मक मानसिकता।
बुन्देलखण्ड के कुछ सन्तसमूह के भक्तों में हो रही वर्चस्व की लड़ाई। ___ गणिनी श्री ज्ञानमति माताजी के गत वर्ष सम्पन्न स्वर्णिम दीक्षा जयन्ती समारोह से गणिनी श्री सुपार्श्वमति माता जी के इसी माह सम्पन्न होने वाले स्वर्णिम दीक्षा जयन्ती समारोह की प्रतिस्पर्धा ।
उस मुनि के चार्तुमास के कार्यक्रम मेरे चातुर्मासिक कार्यक्रम से इक्कीस क्यों, ऐसी भावना।29 __ पाँच समितियों का मनसा, वचसा, कर्मणा पालन करने वाला साधु क्या अपने भक्तों द्वारा चातुर्मास की स्थापना के लिए संख्याबल एवं