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अनेकान्त 60/3
लोग देशना की प्रतीक्षा में उपस्थित रहे। श्रोताओं के मन में निराशा आने लगी. फिर भी देशना मिलेगी की हट श्रद्धा ढाढस बंधाये थी, देशना क्यों नहीं हो रही है, इसका समाधान किसी के पास नहीं था।
पैंसठ दिन तक समवशरण भी एक स्थान पर नहीं रह सका और तीर्थकर महावीर का समवशरण राजगृह के निकट विपुलाचल पर आ गया। असंख्य श्रोता यहाँ उपस्थित थे, पर देशनावरोध पूर्ववत् था। कोई कहता था सौधर्म इन्द्र ने अभी तक गणधर उपस्थित क्यों नहीं किया। काललब्धि के बिना इन्द्र भी गणधर उपस्थित करने में असमर्थ था। गणधर को उनके पादमूल में दीक्षित होना चाहिए तभी दिव्यध्वनि खिरती है। अब सौधर्म इन्द्र को चिन्ता हुई, और अवधिज्ञान से ज्ञात किया कि सम्यक् और यथार्थ ज्ञानी गणधर के अभाव में दिव्य देशना रुकी हुई है। अन्तः इन्द्र ने गणधर को खोजना प्रारंभ किया।
मगध में सोमिल नाम का एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण वर्ण का नेतृत्व करने वाला अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्ति था, उसने मध्यमापावा में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उसमें पूर्वी भागों के बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानों को उनके शिष्य परिवार सहित आमंत्रित किया था। इस यज्ञ का नेतृत्व मगध के प्रसिद्ध विद्वान एवं प्रकाण्ड तर्क शास्त्री इन्द्रभूति गौतम के हाथ में था। इन्द्रभूति गौतम का जन्म मगध जनपद के गोब्बर ग्राम में हुआ था, इनकी माता का नाम पृथ्वी और पिता का नाम वसुभूति था। इनका गोत्र गौतम था। इन्द्रभृति की विद्वता की धाक दूर-दूर तक थी। इसलिये यज्ञ के नेतृत्व को इन्द्रभूति को चुना गया। यज्ञ मण्डप में स्थित विद्वानों ने आकाश मार्ग से जाते हये देवों को देखकर विचार किया कि ये देव यज्ञ में सम्मिलित होने को आ रहे हैं। किन्तु जब वे आगे निकल गये, तो उन्हें लगा कि ये किसी के माया जाल में फंस गये हैं। इन्द्रभूति को जब पता चला कि ये सभी देव महावीर के समवशरण में जा रहे हैं, तो इन्द्रभूति का मन, अहंकार पर चोट लगने से उदास हो गया। उसी समय सौधर्म इन्द्र विद्यार्थी का रूप बनाकर इन्द्रभूति के समक्ष पहुँचा और कहने लगा।