________________
अनेकान्त 60/3
बलिदान की संज्ञा दी गई है न कि आत्महत्या कहा गया है। झाँसी की रानी ने जीते जी अंग्रेजों के हाथ में न आने की कसम ली थी और इसे पूरा भी किया तो क्या इसे आत्महत्या कहा जायेगा? इनके द्वारा मृत्यु के सहर्ष आलिङ्गन करने को किसी ने आत्महत्या नहीं कहा अपितु सभी ने बलिदान ही कहा है। धर्म और कानून की नजरों में भी इस प्रकार की मृत्यु बलिदान शब्द से परिभाषित है, न कि आत्महत्या से। प्रसिद्ध नीतिकार भर्तृहरि कहते हैं कि कोई चाहे न्यायसंगत आचरण की निन्दा करे अथवा प्रशंसा, उससे आर्थिक लाभ हो या हानि तुरन्त मरण प्राप्त हो जाय या सैकड़ों वर्षों तक जियें किन्तु धीर-वीर पुरुष न्याय मार्ग से च्युत नहीं होते हैं।
यहाँ भी नीतिकार ने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपने प्राणों का परित्याग करना श्रेष्ठ कहा है उसे आत्महत्या नहीं कहा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से भी सल्लेखना को आत्महत्या नहीं कहा जा सकता है। - राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान,
__श्रवणबेलगोला 1. आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश 2. सर्वार्थसिद्धि- सम्यक्कायकषायलेखना सल्लेखना। 7/22/पृ.280 3. सागारधर्मामृत 8/1 4. धर्मसंग्रह श्रावकाचार 7/1 5. भगवती आराधना श्लोक सं. 206 6. सल्लेखनाऽथवा ज्ञेया बाह्याभ्यन्तरभेदतः।
रागादीनां चतुर्भुक्तेः क्रमात्सम्यग्विलेखनात् ।। रागो द्वेषश्च मोहश्च कषायः शोकसाध्वसे। इत्यादीना परित्यागः साऽन्तः सल्लेखना हिता।। अन्नं खाद्यं च लेह्यं च पानं भुक्तिश्चतुर्विधा। उज्झन सर्वथाऽप्यस्या बाह्या सल्लेखना मता।।