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अनेकान्त 60/3
तब लाल हो जाता है, जब उसके समक्ष लाल पुष्प रखा होता है। अन्यत्र भी उन्होंने निमित्त कारण के प्रभाव का कथन करते हुए लिखा है कि मुक्तात्मा में ऊर्ध्वगमन स्वभाव प्रकट हो जाने पर भी वह लोकाग्र के आगे गमन नहीं कर पाता है। क्योंकि लोकाग्र के आगे गति में निमित्त कारण रूप धर्मद्रव्य का सद्भाव नहीं पाया जाता है
"मुक्क्तो भव॑स्तत्क्षण ऊर्ध्वमात्मा, लोकाग्रमेति प्रकटात्स्वभावात् । धर्मास्तिकायस्य परं त्वभावात्,
परं न तस्यास्ति गतिर्जिनोक्तिः।। 104 ।।" मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन की प्राथमिकी भूमिका है। चैतन्यचन्द्रोदय में आगमसरणि का ही अवलम्बन लेकर कहा गया है कि निःसंग साधुओं की संगति, जिनवाणी का यथारीति श्रवण तथा जिनबिम्बों के दर्शन से मिथ्यात्व की हानि एवं सम्यक्त्व की उपलब्धि होती है। अठारह दोषों से रहित जिनेन्द्र देव, दयायुक्त धर्म और दिगम्बर मुनि के प्रति श्रद्धा को आगम में सम्यग्दर्शन कहा है। आचार्यश्री लिखते हैं
“जिनेषु येऽष्टादशदोषमुक्ता, धर्मे तथास्मिन् दययांचिते या। श्रद्धा मुनौ स्याच्च दिगम्बरेऽपि,
सम्यक्त्वमेतत् समये समुक्तम् ।। ।।" चैतन्यचन्द्रोदय में जीव के अन्तरंग परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव रूप गुणस्थानों का संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित विवेचन आगमिक गुणस्थान व्यवस्था को स्पष्ट करने में समर्थ है। कुछ विद्वान् आगम के किसी सापेक्ष कथन को आधार बनाकर सम्यक्त्व की उपलब्धि होते ही चतुर्थ गुणस्थान में मोक्षमार्ग स्वीकार करने लगते हैं। आचार्यश्री ने स्पष्ट किया है कि चतुर्थ गुणस्थान में मोक्षमार्ग का सूत्रपात उपचारमात्र है। वे लिखते हैं