________________
14
अनेकान्त 60/3
अधिकतम सामाजिक लाभ व कल्याण की प्राप्ति के लिए श्रम-विभाजन का यह बंधन आवश्यक था। कोई भी नियमों का उल्लघन न कर सके. ऐसी व्यवस्था की गई थी। नियमानुसार कोई भी व्यक्ति अपनी सुनिश्चित आजीविका छोड़कर कोई दूसरी आजीविका नहीं कर सकता था । इस नियम के कारण उनकी सन्तानों के लिए रोजगार सुनिश्चित हो गया और पैतृक व्यवसाय अपनाने से नवीन पीढ़ी को उत्तरोत्तर दक्षता प्राप्त हुई। सामाजिक व कौटुम्बिक जीवन में सुदृढ़ता आई, वर्णसंकर को नियंत्रित किया गया, पारस्परिक वादविवाद बन्द हो गए और राजकीय व्यवस्था सुचारू रूपेण संचालित होने लगी। इस प्रकार मानव समाज में सहअस्तित्व, पारस्परिक सहयोग, सुरक्षा, समानता तथा विश्वबन्धुत्व का विचार वृद्धिगत हुआ। संक्षेप में उन आर्थिक विचारों को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है :
1. ग्रामीण व नगरीय संगठन
सामाजिक व आर्थिक सुदृढ़ता का आधार मजबूत व समुचित ग्रामीण व नगरीय संगठन है क्योंकि आर्थिक समृद्धि इन्हीं पर निर्भर होती है। ऋषभदेव ने आर्थिक संगठन की मजबूती के लिए गांव, नगर आदि का निर्माण कराया और अनेक देशों का विभाग किया। बगीचा एवं तालाबों सहित बाड़ से घिरे हुए घरों को ग्राम कहते हैं। सौ घर हों तो छोटा गांव तथा 500 घर हो तो बड़ा गांव कहा जाता था। छोटे ग्रामों की सीमा एक कोस की तथा बड़े ग्रामों की सीमा दो कोस की मानी गई। तथा नदी, पर्वत, गुफा, श्मसान, वृक्ष व पुल आदि के द्वारा इनका सीमांकन किया जाता था। अनेक भवन, बगीचे, तालाब, सहित प्रधान पुरुषों के रहने योग्य पुर या नगर कहे जाते थे। 3. इनमें उपभोग योग्य वस्तुओं का उत्पादन व निर्माण किया जाता था, जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर थे अपितु नगरों की आवश्यकता की पूर्ति भी करते थे।