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अनेकान्त 60/3
आजीविका के साधन :
भयग्रस्त और त्राहि-त्राहि करती हुई प्रजा को देखकर दयार्द्रचित्त ऋषभदेव ने अपने विशिष्ट ज्ञान से जाना कि कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने पर यह कर्मभूमि प्रकट हुई, अतः प्रजा को पट्कर्मों द्वारा आजीविका करना उचित होगा ऐसा विचार कर उन्होंने प्रजा के हितकारक आजीविका के निम्न साधनों का प्रतिपादन किया:
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1. असिकर्म अर्थात् सैनिक और आरक्षी कार्य से जीविका कमाना, 2. षिकर्म अर्थात् लिपिक वृत्ति,
3. कृषिकर्म अर्थात् खेती का कार्य करना,
4. विद्याकर्म अर्थात् अध्यापन व शास्त्रोपदेश द्वारा आजीविका
कमाना,
5. वाणिज्यकर्म अर्थात् व्यापार करना, तथा
6. शिल्पकर्म अर्थात् वस्तुओं का उत्पादन, निर्माण आदि कार्य करना' ।
उपर्युक्त षट्कर्मों से आजीविका कमाने वाले गृहस्थों को आदिपुराण में "पट्कर्मजीविनाम्" कहा जाता है । ऋषभदेव ने असि, मषि आदि पट्कर्मों की न केवल सैद्धान्तिक अपितु इसकी व्यवहारिक शिक्षा भी प्रदान की ।
1. असिकर्म
शस्त्र धारण कर सेवा या आजीविका करना असिकर्म कहलाता है' । असि शब्द सांकेतिक है, जिसमें तलवार, धनुषवाण, बरछी, भाला, बन्दूकें, रिवाल्वर, मशीनगन, बम-फाईटर्स तथा राकेट आदि भी सन्निहित होते हैं । वास्तव में यह सैनिकों एवं पुलिस वालों के लिए आजीविका का साधन है । ऐसे व्यक्ति साहसी और वीर होना चाहिए । “क्षत्रियाः शस्त्रजीवित्वम् " आदिपुराण के इस कथन से भी यह स्पष्ट होता है, क्षत्रिय जाति के व्यक्ति ही शस्त्र धारण द्वारा आजीविका करते थे, अथवा जो साहसी और वीर व्यक्ति देश की आन्तरिक व बाहूय